मिथिलामे एखनहुँ प्रचलन अछि जे कन्याक विवाहमे पहिल सिन्दूर धोबिन दैत छैक। एहि परम्पराक पाछाँ मिथिलामे प्रचलित सोमवारी व्रतकथाक सम्बन्ध छैक। सोमवारी व्रतक विधानक जँ अमावस्या तिथिकें सोमदिन हो तँ ओहि दिन ई व्रत करबाक चाही। केवल व्रते नहिं एकटा पैघ अनुष्ठानक विधान कएल गेल छैक। ई भगवान् विष्णु सँ सम्बन्धित व्रत थीक आ सन्तानक रक्षा, वंशक उन्नति, सन्तान-प्राप्ति आदि कामनासँ ई अनुष्ठान कएल जाइत छैक। एहिमे दोपहरियामे पीपरक गाछक नीचाँ भगवान् विष्णुक पूजा कएल जाइत अछि आ एक हाथमे फल लए पीपरक गाछक परिक्रमा कए प्रत्येक बेर ओ फल भगवान् कें अर्पित कएल जाइत छैक। ई परिक्रमा 108 बेर होइत अछि। पूजा सम्पन्न कएलाक बाद ऐहब कें पूआ, पकमान आदि खुआओल जाइत छैक। ई महिलालोकनिक बीच प्रसिद्ध अनुष्ठान छल। एहि प्रकारें दोपहरियामे पूजा सम्पन्न कए स्वयं पारणा कएल जाइत अछि।
व्रतक मूल स्रोत
धर्मशास्त्रक इतिहासमे महामहोपाध्याय पाण्डुरंग वामन काणे लिखैत छथि जे सोमवारक अमावस्या अत्यन्त पवित्र होइत अछि; कालविवेक (492, भविष्यपुराण) ; हेमाद्रि (काल, 643) ; वर्षक्रिया कौमुदी (9) : आजुक दिन लोक (विशेषतः नारी) अश्वत्थ वृक्षक लग जाइत छथि, विष्णुक पूजा करैत छथि आ 108 बेर प्रदक्षिणा करैत छथि; व्रतार्क (पाण्डुलिपि 350 बी. 356) ; धर्मसिन्धु (23) ; व्रतार्कक कथन अछि जे एकर उल्लेख निबनिधमे नै अछि, ई मात्र प्रचलन पर आधृत छैक।
एहि निबन्धसभक अतिरिक्त रुद्रधर (14म शती) सेहो वर्षकृत्यमे विस्तारसँ एकर उल्लेख केने छथि आ भविष्य पुराणसँ एकर कथा उद्धृत कएने छथि।
वेंकटेश्वर स्टीम, मुंबई सँ प्रकाशित भविष्य-पुराणक संस्करणमे ई कथा उपलब्ध नै अछि, किन्तु हेमाद्रिक चतुर्वर्गचिन्तामणि मे एकर उल्लेख हेबाक कारणें एतबातँ निश्चित छैक जे 13म शती धरि ई व्रत आ ओकर कथा भारतक विशाल क्षेत्रमे प्रचलित भए चुकल छल।
आइयो सन्तानक रक्षा आ उन्नतिक लेल अनेक स्थान पर ई व्रत आ पूजा कएल जाइत अछि। मगध क्षेत्रमे एखनहुँ सोमवती अमावस्याकें पीपरक गाछक तर मे गाछमे रंगीन सूत लपेटबाक लले महिलालोकनिक झुण्ड देखल जा सकैत अछि।
मिथिलामे एकर प्रचलन बहुत कम भए गेल अछि। किछु व्यक्ति एहि दिन व्रत मात्र कए संतोष कए लैत छथि।
एहि व्रतक कथामे कहल गेल अछि जे सोमा नामक धोबिनकें पूर्व जन्ममे सोमवारी अमावास्याक व्रतक पुण्यक कारणें एतेक सामर्थ्य रहनि जे ओ मृत व्यक्तिकें सेहो जीबित कए सकैत रहथि। हुनके पूर्वजन्मक सखी पूर्वजन्ममे व्रत करबाक संकल्प लए आलस्यसँ व्रत नै कएलनि, जेकर पापक कारणें अगिला जन्ममे विवाहक काल वेदी पर विधवा होएबाक नियति बनि गेलनि।
ओ अगिला जन्ममे हुनक नाम गुणवती छल। एक बेर एकटा महात्मा गुणवतीक माय कें ई भविष्यवाणी सुना देलनि आ संगहि इहो कहि देलखिन जे एहु गुणवतीक विवाहक समय जँ सिंहल दिवीपसँ सोम धोबिनकें आनय जाए तँ ई वैधव्य-योग टलि सकैत अछि। ओहि गुणवतीक विवाह रुद्रशर्मासँ ठीक भेल तँ गुणवतीक भाइ शिवशर्मा सिंहल द्वीपसँ सोमा कें अनबाक हेतु गुणवतीक कें संग लए बिदा भेलाह। कोनहुना समुद्र लाँघि सोमाक आँगन बहारि, नीपि हुनका प्रसन्न कए बहिनक विवाह कालमे सोमाकें अनलनि। आ वेदी पर रुद्रशर्माक मृत्यु भेला पर सोमा अपन पुण्यक प्रभावसँ हुनका जीवन दान देलनि।
सोमवारी अमावस्याक ई कथा स्पष्ट रूपसँ कहैत अछि जे ईश्वरक उपासना आ ओकर प्रभावक सन्दर्भमे जातिक कोनो विचार नै रहबाक चाही। ई कथा भारतीय परम्परामे जाति-निरपेक्षताक स्थिति स्पष्ट करैत अछि। जे लोकनि हमरालोकनिक परम्परा कें जातिवादी होएबाक आरोप लगबैत छथि हुनका ई कथा नीक जकाँ पढबाक चाहियनि आ देखबाक चाहियनि जे आइयो धरि कन्याक विबाह मे धोबिनक द्वारा पहिल सिन्दूर दिएबाक परम्परा अछि।
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