Brahmi Publication

Top Menu

  • उद्देश्य
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति

Main Menu

  • उद्देश्य
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति
  • उद्देश्य
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति

logo

Brahmi Publication

  • उद्देश्य
    • जानकीपूजाविधि, (जानकीसहस्रनाम सहित), लेखक- पण्डित श्री शशिनाथ झा

      May 3, 2022
      0
    • article by Radha kishore Jha

      वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है?

      October 28, 2021
      0
    • धर्मायण के आश्विन अंक के डिजिटल संस्करण का हुआ लोकार्पण

      September 21, 2021
      1
    • Kadamon ke Nishan

      मानवीय संवेदनाओं को समेटती डा. धीरेन्द्र सिंह की मैथिली कविताएँ- "कदमों के ...

      September 6, 2021
      0
    • Krishna-janma cover

      मनबोधकवि कृत कृष्णजन्म (प्रबन्धकाव्य), डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      May 2, 2021
      0
    • Kirtilata cover

      विद्यापति कृत कीर्त्तिलता, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      May 2, 2021
      1
    • विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      May 2, 2021
      1
    • अपभ्रंश काव्य में सौन्दर्य वर्णन

      अपभ्रंशकाव्य में सौन्दर्य वर्णन -डॉ. शशिनाथ झा

      April 30, 2021
      1
    • डाकवचन-संहिता

      डाकवचन संहिता (टिप्पणी-व्याख्या सहित विशुद्ध पाठ, सम्पूर्ण)- डॉ. शशिनाथ झा

      April 30, 2021
      1
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • Dayananda's merits

      ‘पितर’ के अर्थ में ‘अग्निष्वात्ताः’ शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?

      September 25, 2022
      0
    • Sanatana religion

      Hinduism versus Sanatana Dharma : Which of the two words is correct?

      May 10, 2022
      0
    • Krishnasthami

      ताही बीचै जनमल छोरा यानी उसी बीच छोरे श्रीकृष्ण का जन्म

      August 30, 2021
      0
    • सिरहर, सिरहड़

      मिथिलाक लोक-परम्परामे सिरहड़-सलामी

      August 7, 2021
      0
    • श्राद्ध-कर्म

      विपरीत परिस्थिति में श्राद्ध की शास्त्र-सम्मत विधि

      May 12, 2021
      0
    • डाकवचन-संहिता

      डाकवचन संहिता (टिप्पणी-व्याख्या सहित विशुद्ध पाठ, सम्पूर्ण)- डॉ. शशिनाथ झा

      April 30, 2021
      1
    • मिथिलाक प्राचीन सदाचार 01

      March 17, 2021
      0
    • Responsibilities of a Brahmana

      छठ का अर्घ्य- पण्डितजी की जरूरत क्यों नहीं?

      November 18, 2020
      1
    • Responsibilities of a Brahmana

      मैथिली लोकगीतों में नारी

      August 15, 2020
      0
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • श्राद्ध और पितृकर्म पर एक खुली बहस- सनातन धर्म हमें जोड़कर रखता ...

      October 2, 2023
      0
    • manuscript from Mithila

      गोनू झा व्यक्तित्व आ इतिहासक स्रोतक रूपमे पंजी-विमर्श

      August 7, 2023
      0
    • धूर्तराज गोनू कर्णाट शासनक कालक ऐतिहासिक पुरुष छलाह

      August 4, 2023
      0
    • सतीप्रथा

      भारत में सती प्रथा पर हंगामे के इतिहास की सच्चाई

      June 3, 2023
      1
    • Arya Samaj

      जॉन मुइर की ‘मतपरीक्षा’ तथा दयानन्द के ‘सत्यार्थप्रकाश’ का ‘साइड इफैक्ट’

      May 21, 2023
      0
    • bipra-dhenu--

      भारतीयों का वेद 'रामचरितमानस'

      March 15, 2023
      0
    • Vritta Muktavali of Maithil Durgadatta

      मैथिल दुर्गादत्त ओ हुनक छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थ 'वृत्तरत्नावली'

      September 23, 2022
      1
    • Lalkrishna Advani on Maithili language

      मैथिली आ अंगिका पर लालकृष्ण आडवानी की बाजल रहथि

      September 22, 2022
      0
    • mithila map

      मिथिला आ ओकर अस्मिताक निर्धारक तत्त्व

      August 31, 2022
      0
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति
  • सनातन धर्म में बहुदेववाद बनाम धार्मिक स्वतंत्रता

  • क्या सनातन धर्म में बदलाव सम्भव नहीं है?

  • जॉन मुइर की ‘मतपरीक्षा’ तथा दयानन्द के ‘सत्यार्थप्रकाश’ का ‘साइड इफैक्ट’

  • छठ का अर्घ्य- पण्डितजी की जरूरत क्यों नहीं?

  • छठि परमेसरीक स्वरूप आ कथा

इतिहास
Home›इतिहास›दो कहानियाँ, महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की

दो कहानियाँ, महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह की

By Bhavanath Jha
June 18, 2022
0
2
Share:
Maharaj Lakshmishwar Singh

बचपन में मैंने दो कहानियाँ सुनीं थी। एक  कहानी तो बिट्ठो गाँव से जुड़ी है, जहाँ मेरा ननिहाल है। चूँकि इस कहानी का स्रोत मेरा ननिहाल ही है और केवल तीन-चार पीढ़ी की बात है, इसलिए हो सकता है कि वह इतिहास ही  हो। आप न मानें, तो फिर उसे ‘एनेक्डोट’ रहने दीजिएगा।

ऐतिहासिक पुरुष की कहानियाँ होतीं हैं, कुछ अतिरंजित भी होतीं है, कुछ में काफी हद तक सच्चाई होती है, कोई-न-कोई इतिहास अवश्य जुड़ा होता है; उन्हें हम इतिहास में स्थान नहीं दे पाते। महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के बारे में भी बहुत सारी कहानियाँ बूढ़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। अब तो वह परम्परा खतम हो गयी है। मेरे बचपन तक कहानियाँ सुनाने की बात जिन्दा थी।

दरभंगा के महाराज 2,400 वर्ग मील से अधिक क्षेत्र तथा 750,000 से अधिक जनता के शासक थे। 1888ई.मे उनकी आमदनी 2,00,000 रुपये प्रति वर्ष थी। वे अक्सर कलकत्ता में रहा करते थे और अंग्रेजी सरकार पर इस बात के लिए जोर डालते रहते थे कि वह ब्रिटेन की जनता की तरह समान नागरिकता नियम भारतीय उपनिवेश के लिए भी लागू करे। वे अंगरेजों के द्वारा फैलाये गये भेद-भाव की नीति का विरोध करते थे। जब एक ही शासन के अंतर्गत भारत भी है, इंग्लैंड भी है तो जो जनाधिकार इंग्लैंड की जनता को मिली है वह भारत की जनता को क्यों न मिले। इसके लिए उन्होंने अनेक कानूनों में संशोधन भी कराया था। उन्ही की दो कहानियाँ मैंने बचपन में सुनी थी।

कहानी सं. 1- कलकत्ता में बिट्ठो का ऐसा ताशा बजबाया कि न्यूसेंस का कानून एक ही दिन में सुधर गया।

बात यह हुई कि महाराज कलकत्ता में रहा करते थे। उनके पड़ोस में एक गबैयाजी का मकान था। रात में जब महाराज के सोने का समय होता तो गबैयाजी अपना सितार लेकर बैठ जाते और राग अलापने लगते। जोरों की आवाज मुहल्ले में गूँज जाती!

महाराज की नींद में खलल पड़ जाती तो वे बेचैन हो उठते। भला कब तक बर्दास्त करते। उन्होंने गबैयाजी के पास अगले दिन खबर भिजबायी; आग्रह किया कि रात को ऐसा न करें। गबैयाजी नहीं माने।

फिर महाराज ने मुकदमा दायर किया। कोर्ट ने भी फैसला सुना दिया कि कोई व्यक्ति अपने मकान में कुछ भी कर सकता है। ऐसा कोई कानून नहीं है, जिससे हम उसे रोक सकें।

महाराज ऐसे ही मानवाधिकार के नियमों में सुधार लाने के लिए दिन-रात सोचते रहते थे। लंदन का कानून देखा तो उसमें एक था- न्यूसेंस लॉ। कोई व्यक्ति अपने घर में ऐसा ही काम कर सकता है ताकि उसके पड़ोसी को कोई कष्ट न हो। ‘यह कानून तो भारत में भी होना चाहिएʼ– महाराज ने ठान लिया।

सरसो-पाही के पास बिट्ठो गाँव से कलकत्ता बुलाये गये ताशा बजाने वाले

बस यहाँ से बिट्ठो गाँव की कथा आरम्भ होती है। महाराज का ननिहाल लोहना गाँव था। उससे कुछ पश्चिम बिट्ठो गाँव का ताशा बाजा बहुत नामी था। यह गाँव वर्तमान में मधुबनी जिला के पंडौल प्रखण्ड में सरसो पाही से उत्तर आधा कि.मी. पर है। छोटा गाँव है पर पुराना है। करमहे बेहट मूल के लोग यहाँ बसते हैं। महाराज राघव सिंह ने भी इस गाँव में विवाह किया था। राज परिवार से जुड़ा गाँव है। हलाँकि लक्ष्मीश्वर सिंह के समय तक इस गाँव में गरीबी बहुत थी। गाँव में बुधेश पोखरा है, जहाँ शायद कभी बौद्ध मन्दिर रहा हो, अब केवल नाम बचा है।

सारुख खाकर शास्त्रार्थ करने वाले पंडित

इसी गाँव की कहानी है कि यहाँ दो भाई विद्वान् रहा करते थे। दोनों एक से एक विद्वान्। हमेशा शास्त्रार्थ होता रहता था। यहाँ तक कि जब वे दोनो भाई चौर-चाँचर से सारुख उखाड़ने जाते थे। वही सारुख उनका और उनके परिवार का भोजन था। एक दिन राजा उस चौर के पास से गुजर रहे थे तो उन्होंने दोनों भाइयों का शास्त्रार्थ सुना। राजा ठमक गये। दोनों भाइयों को बुलाया और कहा कि हम आपको जमीन देते हैं, आप खाइए-पीजिए और शास्त्र-चिन्तन कीजिए। इन्होंने कहा कि धन आते ही विद्या लुप्त हो जाती है। सरस्वती सारुख खाकर गुजारा करने वाले को पसंद करती है। अतः हमे आपका दिया धन नहीं चाहिए। हम पर बहुत कृपा हो तो इतना भर आश्वासन दीजिए कि इस चौर-चाँचर में आपके दल का हाथी न पैठे। उसके पैठने से सारुख नष्ट हो जाता है और हमें भोजन करने में दिक्कत होती है।

तो ऐसा है वह गाँव। उस गाँव के विद्वान् ही नामी नहीं थे, ताशा बाजा भी नामी था। बल्कि आज भी उस परोपट्टा में ताशा के लिए लोग बिट्ठो गाँव को ही दौड़ लगाते हैं। ताशा एक प्रकार का मारू बाजा है- लड़ाई में सैनिकों का मनोबल बढ़ाने वाला। जब हँसेड़ी चलती थी तो यही ताशा बजाया जाता था।

यह मुगलकाल का यह वाद्ययंत्र है। मिट्टी का कस्तरा (छाँछ) बनाया जाता है लगभग एक हाथ व्यास का। यह कस्तरा ठीक वैसा ही, जैसा दही जमाने के लिए बनाते हैं। इसी कस्तरे को चमड़ा से मढ़ दिया जाता है और बाँस की दो पतली कपचियों से इसे बजाया जाता है। बजानेवाले इसे गले में लटका लेते हैं और काफी तेजी से हाथ चलाते  हुए बजाते रहते हैं। एक भी ताशा बजने लगे तो भीड़ में कान फटने लगता है। आपस में कुछ बात करना सम्भव नहीं पाता।

दही जमाने वाला मटकूर
मिथिला का ताशा

मिथिला में इसे बजाने वालों का दल बारात के साथ चलता है। कोई भी मांगलिक अवसर हो तो इसकी आबाज होनी चाहिए। कहा जाता है कि यात्रा के समय कोई छींक दे या अशुभ बोल तो इसकी आवाज में सब कुछ खो जाता है। यदि चार लोग भी एक साथ ताशा बजाने लगे तो दो किलमीटर तक तो आवाज जरूर गूँज जायेगी।

ताशा वाले पहुँच गये कलकत्ता

हाँ, तो महाराज ने बिट्ठो गाँव खबर भिजबायी कि ताशा बजानेवालों का एक दल कलकत्ता भेजिए। सरकार का आदेश था तो भला देर क्यों हो!। चुने हुए कुछ ताशा बजाने वाले कलकत्ता पहुँचे। महाराज के आवास पर ठहरे।

कहते हैं कि जाड़े का मौसम था। जाड़े में ताशा को गरम किया जाता है, तब वह जोरों से बजता है, नहीं तो ‘मेहाएलʼ (moisturized) होता है तो आबाज फुस्स हो जाती है। बजाने वालों ने ताशा को इसे सेंकने में अपनी पूरी कला दिखायी तथा ठीक जिस समय गबैयाजी का राग-तान शुरू हुआ, उसी समय महाराज के बंगले की छत पर ताशा तड़तड़ना शुरू हुआ।

दो किलोमीटर तक खलबली मच गयी। कई अंगरेज अधिकारी के भी घर थे। वे जज साहब भी उसी आसपास रहते थे, जिन्होंने गबैयाजी के पक्ष में फैसला दिया था। सबलोग अपने-अपने घर से बाहर निकल पड़े। अनुमान है कि वे ऐसे ही निकल पड़े होंगे, जैसे भूकम्प होने पर लोग मैदान की ओर भागते हैं। पता लगाना शुरू किया कि कहाँ से आबाज आ रही है; फिर महाराज के घर पर इसे बंद कराने के लिए आदेश आने लगे; कुछ ने मनुहार की; तो कुछ ने प्रार्थना का संदेश भिजबाया।

महाराज ने कहा कि हम अपने घर पर कुछ भी करें, तो दूसरे को भला उससे क्या मतलब? यह देखिए कोर्ट का फैसला!

कहा जाता है कि वे जज साहब खुद इनके पास आये। हो सकता है कि इस बात में कुछ बढ़ा-चढाकर कहा जा रहा हो! बिट्ठो गाँव के स्रोत से मेरे पास तक यह कहानी आयी है, तो कुछ तो काव्यात्मकता होगी ही। आजकल जिसे ‘नमक-मिर्च लगानाʼ कहते हैं, उसे शिष्ट शब्दों में काव्यात्मकता कहते हैं, अतिशयोक्ति कहते हैं, अतिरंजना कहते हैं, जो एक अलंकार है।

जो हो, जज साहब खुद आये हों अथवा उनके कोई आदमी आया हो, उन्होंने मनुहार किया- अभी बंद कराइए महाराज! कल इस पर फैसला करते हैं।

आखिरकार ताशा बंद हुआ; सबने चैन पायी। दूसरे दिन जज साहब ने खुद अपना फैसला बदला और लिखा कि कोई व्यक्ति तभी तक अपने घर में मनमाना काम कर सकता है कि तक कि उस काम से पड़ोसी को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

महाराज यही तो चाहते थे। अगले ही दिन बिट्ठो के ताशा वालों को इनाम देकर गाँव भेज दिया।

इधर उस समय के देश की राजधानी कलकत्ता में इस बात की चर्चा चलने लगी। सबको यह बात पसंद आयी और तब से कानून मे ही सुधार कर लिया गया जो आज न्यूसेंस लॉ के रूप में हम देखते हैं।

कहानी संख्या 2- हम धोती-कुरता वालों की भी औकात होती है!

बात यह हुई कि महाराज कलकत्ता में रहते थे। राजा होते हुए भी कभी-कभार पंडित वेष में घूमने निकल जाते थे। आखिर थे तो ब्राह्मण पंडित घराने के ही न! सो कलकत्ता की गलियों में सैर करने निकल जाते थे। बस, साथ में एक मैनेजर टाइप का कोई आदमी वैसे ही धोती-कुरता में रहता होगा!

एक दिन इसी रूप में एक गहने की दुकान पर पहुँच गये। दुकानदार से हीरे की एक अंगूठी दिखाने को कहा। दुकानदार को विश्वास नहीं हुआ कि यह अदना-सा आदमी कुछ खरीदेगा भी; नाहक परेशान करेगा। दुकानदार ने मुँह बिजुकाकर हँस दिया। बोला तो कुछ भी नहीं, पर भाव था कि – ‘अबे! चल फूट यहाँ से! बड़ा आया है गहना देखने वाला। नाहक परेशान न कर।ʼ

फिर भी महाराज ने आग्रह किया तो उसने अनमने ढंगे से एक अंगूठी दिखाई। ये देख ही रहे थे कि उसने हाथ से झपट लिया और कहा कि क्या देख रहे हो, मोशाय! तुमि की देखछो! आपनार शक्ति देखून!

महाराज हँस पड़े। बोले कि आपकी दुकान की कितनी कीमत है- आपनार पूरो दूकानेर मूल्य कत?

दुकानदार ने मजाक में ही कुछ बोल दिया। ये तो कुछ लेने वाला है नहीं, तब तो कुछ भी बोल दो, क्या फर्क पड़ता है! फिर भी उसने दो-तीन गुना बढ़ाकर तो जरूर कहा होगा।

महाराज लौट गये और उसी मैनेजर को सरकारी वेष में भेजा- पूरे रुपये लेकर। उसने दुकानदार को थैली थमा दी और उसे दूकान से खींचकर बाहर कर दुकान में ताला जड़ दिया।

इसके बाद की कोई कहानी कहने लायक नहीं है। दुकानदार दौड़ा आया महाराज के पास। माफी माँगी। महाराज थे तो बड़े दयालु वे भला किसी की पेट पर लात क्यों मारते। उन्होंने माप कर दिया पर हिदायत दी कि आइन्दा किसी का वेष देखकर उसका मजाक मत उड़ाया करो। हम धोती-कुरता वालों की भी औकात होती है!

TagsmaithiliMithilaबिट्ठो गाँवमहाराज लक्ष्मीश्वर सिंहमिथिलाराज दरभंगा
Previous Article

शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग कैसा होना चाहिए?

Next Article

जब मिस उर्दू ने दरभंगा के मुंसिफ ...

0
Shares
  • 0
  • +
  • 0
  • 0
  • 0
  • 0

Bhavanath Jha

मिथिला आ मैथिलीक लेल सतत प्रयासरत

Related articles More from author

  • Maharaj Lakshmishvara Singh
    इतिहास

    महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक द्वारा कएल गेल जनहित कार्य, 1888 ई.

    September 16, 2019
    By Bhavanath Jha
  • vijaystambha from Karnat dynasty
    इतिहास

    कर्णाटशासक हरिसिंह देवक पलायनक तिथि, सिमरौनगढ़सँ ओ कहिया पड़एलाह?

    September 11, 2019
    By Bhavanath Jha
  • Vritta Muktavali of Maithil Durgadatta
    इतिहासधरोहर

    मैथिल दुर्गादत्त ओ हुनक छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थ ‘वृत्तरत्नावली’

    September 23, 2022
    By Bhavanath Jha
  • Mithilakshar
    मिथिलाक्षर

    मिथिलाक्षर के विकास के लिए सरकारी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता

    May 15, 2020
    By Bhavanath Jha
  • Havan during Durga-puja
    पाबनि-तिहारपूजा-पाठ

    Durga Puja Havan: दुर्गापूजामे हवन केना करी?

    September 8, 2019
    By Bhavanath Jha
  • हरिताली, तीज, मैथिली कथा
    पाबनि-तिहारपूजा-पाठलोक-वेद

    हरितालिका व्रतक मैथिली कथा

    October 4, 2019
    By Bhavanath Jha

2 comments

  1. मनीष कुमार पिंटू 18 June, 2022 at 13:20 Reply

    बड नीक लागल अपन क्षेत्रक राजाजीक इतिहास श्रीमान। ई जानकारी सब आधुनिक मिथिलाक वासी सबकेँ कहाँ मिल पाबैत अछि। लक्ष्मेश्वर सिंह महाराज के बारे में जानकारी दय केर लेल कोटि कोटि प्रणाम व धन्यवाद।?

  2. ARVINDA KUMAR SINGH JHA 18 June, 2022 at 09:26 Reply

    अत्यधिक प्रशंसनीय ओ उच्चस्तरीय,अनुकरणीय

Leave a reply Cancel reply

अहाँकें इहो नीक लागत

  • Mithila Yantra
    इतिहासपर्यटन

    मिथिला की तीर्थयात्रा सम्बन्धी विवरण

  • Maharaja Rameshwar Singh
    इतिहास

    दरभंगा महाराज रमेश्वर सिंह कें “काइजर-ए-हिन्द” (“कैसर-ए-हिन्द”क उपाधि

  • सरस्वती
    इतिहासपूजा-पाठ

    सरस्वती का वर्णन वेदों में भी विद्या की देवी के रूप में

  • Maharaj Lakshmishvara Singh
    इतिहास

    महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक द्वारा कएल गेल जनहित कार्य, 1888 ई.

  • इतिहासमिथिलाक्षर

    बौद्ध-ग्रन्थ ललित-विस्तर मे कोन कोन लिपिक उल्लेख भेल अछि?

कॉपीराइट की स्थिति

इस साइट का सर्वाधिकार पं. भवनाथ झा के पास सुरक्षित है। नियम एवं शर्तें लागू

सम्पर्क-

भवनाथ झा, Email: bhavanathjha@gmail.com whatsApp: 9430676240

शैक्षणिक उद्देश्य से कापीराइट की स्थिति

एहि वेबसाइटक सामग्रीक सर्वाधिकार पं. भवनाथ झा लग सुरक्षित अछि। शैक्षिक उद्देश्य सँ सन्दर्भ सहित उद्धरणक अतिरिक्त एकर कोनो सामग्रीक पुनरुत्पादन नहिं करी। जँ कतहु शैक्षिक उद्देश्यसँ सामग्री लेल जाइत अछि तँ ओहि वेबपृष्ठक URL सहित देल जा सकैत अछि।

  • उद्देश्य
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
  • इतिहास
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
  • वैधानिक
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति
Copyright: Bhavanath Jha- All rights Reserved, 2021