चतुर्थीचन्द्रपूजाविधि
भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि कें व्रत-उपवास कए सन्ध्याकाल स्त्री अथवा पुरुष पूजा करथि।
संकल्प
तेकुशा, तिल एवं जल लए-
नमोऽस्यां रात्रौ भाद्रे मासि शुक्ले पक्षे चतुर्थ्यां तिथौ अमुकगोत्रायाः मम अमुकीदेव्याः सकलकल्याणोत्पत्तिपूर्वकधनधान्यसमृद्धिसकलमनोरथसिद्ध्यर्थं यथाशक्तिगन्धपुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यज्ञोपवीत-वस्त्र-नानाविध-नैवेद्यादिभिः रोहिणीसहित-भाद्र- शुक्ल-चतुर्थीचन्द्र-पूजनमहं करिष्ये।।
(एतए महिलाक द्वारा कएल गेल पूजाक मन्त्र देल अछि। यज्ञोपवीतधारी ‘नमो’ के स्थानमे ओंकारक उच्चारण करथि)
पञ्चदेवताक पूजा
अक्षत लए आवाहन- नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताः इहागच्छत इह तिष्ठत।
अर्घ्य– एतानि पाद्यादीनि एषोsर्घ्यः नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
चानन– इदमनुलेपनम् नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
अक्षत- इदमक्षतम् नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
फूल– इदं पुष्पम् नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
बेलपात- इदं बिल्वपत्रम् नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
दूबि- इदं दूर्वादलम् नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
अरघीमे जल लए धूप, दीप, नैवेद्य, पान सुपारीक उत्सर्ग करी- एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।
अरघीमे जल लए आचमन- इदमाचनीयं नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यो नमः।।
विष्णुक पूजा
एकर बाद विधवा स्त्री अथवा पुरुष विष्णुक पूजा करथि।
तिल लए- नमो भगवन् श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ एना आवाहन कए
जल लए- एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो भगवते श्रीविष्णवे नमः।
एहि तरहें पञ्चोपचारसँ पूजा करथि।
गौरीक पूजा
सधवा स्त्री विष्णुक स्थान मे गौरीक पूजा करथि।
अक्षत लए- नमो गौरि इहागच्छ इह तिष्ठ (आवाहन कए)
अर्घ्य- एतानि पाद्यादीनि नमो गौर्यै नमः।
चानन- इदमनुलेपनम् नमो गौर्यै नमः।
सिन्दूर- इदं सिन्दूरम् नमो गौर्यै नमः।
अक्षत- इदमक्षतम् नमो गौर्यै नमः।
लाल फूल- इदं पुष्पं नमो गौर्यै नमः।
दूबि- इदं दूर्वादलं नमो गौर्यै नमः।
बेलपात- इदं बिल्वपत्रं नमो गौर्यै नमः।
अरघीमे जल लए धूप, दीप, नैवेद्य, पान-सुपारीक उत्सर्ग करी-
एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-ताम्बूल-यथाभाग-नानाविधनैवेद्यानि नमो गौर्यै नमः।
अरघी मे जल लए- इदमाचमनीयम् नमो गौर्यै नमः।
चतुर्थीचन्द्रक पूजा
एकर बाद अक्षत लए- नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्र इहागच्छ इह तिष्ठ। एना आवाहन कए
उज्जर फूल लए चन्द्रमाक ध्यान करी-
श्वेताम्बरं स्वच्छतनुं सुधांशुं चतुर्भुजं हेमविभूषणाढ्यम्। वरं सुधां दिव्यकमण्डलुञ्च करैरभीतिञ्च दधानमीडे।। एष पुष्पाञ्जलिः नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्राय नमः।
एकर बाद अरघीमे जल, चानन आ फूल लए-
सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय गोविन्दाय नमो नमः।।
एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्राय नमः।
उजरा चानन लए-
मलयाद्रिसमुद्भूतं श्रीखण्डं त्रिदशप्रियम्।
सर्वपापहरं सौख्यं चन्दनं मे प्रगृह्यताम्।।
इदमनुलेपनं नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
अक्षत– इदमक्षतं नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
उजरा फूल-
त्रैलोक्यमोदकं पुण्यं शुक्लपुष्पं मनोहरम्।
दिव्यौषधिक्षपानाथ गृह्यतां च प्रसीद मे।।
एतानि पुष्पाणि नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
बेलपात- इदं बिल्वपत्रम् नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
दूबि- इदं दूर्वादलम् नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
जनेउ- सुसंस्कृतं चतुर्वेदैर्द्विजानां भूषणं वरम्।
यज्ञोपवीतं देवेश कृपया मे प्रगृह्यताम्।।
इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
वस्त्र- तन्तुसन्तानसम्भूतं कलाकोशलकल्पितम्।
सर्वाङ्गभूषणं श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम्।।
इदं वस्त्रं बृहस्पतिदैवतं नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
अरघीमे जल लए धूप, दीप, डाली, दहीक उत्सर्ग करी-
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्ति मे ह्यचलां कुरु।
ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च पराङ्गतिम्।।
एतानि गन्ध-पुष्प-धूप-दीप-सदधि-पक्वापक्वान्नादि-नानाविधनैवेद्यानि नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्राय नमः।
पान-सुपारी-
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
कर्पूरादिसमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
एतानि ताम्बूलानि नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्राय नमः।
धूप-
गन्धभारवहं दिव्यं नानावस्तुसमन्वितम्।
सुरासुरनरानन्दं धूपं देव गृहाण मे।।
एष धूपः नमो रोहिणीसहितभाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्राय नमः।
कलश पर राखल दीप उत्सर्ग करी
मार्तण्डमण्डलाखण्डचन्द्रबिम्बाग्निदीप्तिमान्।
विधात्रा देवदीपोऽयं निर्मितस्तेऽस्तु भक्तितः।।
एष कलशदीपः नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्राय नमः।
शंखमे दूध, उजरा फूल आ चानन लए-
अत्रिनेत्रसमुद्भूत क्षीरोदार्णवसम्भव।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं रोहिण्या सहितप्रभो।।
इदं दुग्धार्घ्यम् नमो रोहिणीसहित-भाद्रशुक्ल-चतुर्थीचन्द्राय नमः।
एकर बाद बेरा-बेरी डाली आ दहीक छाँछी हाथमे लए-
दर्शन-मन्त्र-
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीः तव ह्येष स्यमन्तकः।।
प्रणाम-मन्त्र-
नमः शुभ्रांशवे तुभ्यं द्विजराजाय ते नमः।
रोहिणीपतये तुभ्यं लक्ष्मीभ्रात्रे नमोऽस्तु ते।।
प्रार्थना-मन्त्र-
मृगाङ्करोहिणीनाथ शम्भोः शिरसि भूषण।
व्रतं सम्पूर्णतां यातु सौभाग्यं च प्रयच्छ मे।।
रूपन्देहि यशो देहि भाग्यं भगवन् देहि मे।
पुत्रान्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे।।
विसर्जन
चन्द्रमाक– नमो रोहिणीसहित भाद्रशुक्लचतुर्थीचन्द्र पूजिसोऽसि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ।
गौरीक- नमो गौरि पूजितासि प्रसीद क्षमस्व।
पञ्चदेवताक- नमो गणपत्यादिपञ्चदेवताः पूजिताः स्थ क्षमध्वं स्वस्थानं गच्छत।
दक्षिणा
दक्षिणाक रुपया कें भूमि पर राखि जल सँ सिक्त कए तेकुशा, तिल एवं जल लए
नमोsस्यां रात्रौ कृतैतद् रोहिणीसहितचतुर्थीचन्द्रपूजनकर्मप्रतिष्ठार्थं एतावद् द्रव्यमूल्यहिरण्यम् अग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणाम् अहं ददे।
पूजा सम्पन्न भएलाक बाद घरक आन सदस्य एक एक टा फल हाथमे लए चन्द्रमाक दर्शन करैत काल निम्नलिखित मन्त्र पढथि। यद्यपि एहि सन्ध्यामे चन्द्रमाक उदय पश्चिम-दक्षिण कोणमे होइत अछि, आ धात्रेयिकावाक्य उत्तरमुख अथवा पूर्व मुहें ठाढ भए पढबाक थीक, तें चन्द्रमाक दर्शन कए उत्तराभिमुख भए ई दूनू मन्त्र पढि पुनः चन्द्रमाक दर्शन करबाक परम्परा देखैत छी।
हाथ में फल लए चन्द्रमाक स्तुति-
।।इति चतुर्थीचन्द्रपूजनपद्धतिः।।
सादर यथोचित,
बहुत अच्छे ewan व्यवस्थित ढंग आपने पूजा करने की विधि बताएं हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद
पऺडित जी प्रणाम। प्रतिदिन पन्चदेव पूजा केना करी कोन मन्त्र पढी बतेबाक कष्ट करब।