छठि पाबनि सूर्यक उपासना थीक। सूर्यक तिथि सप्तमी थीक। तखनि मिथिला एवं मगधक लोक-परम्परामे छठि पाबनिमे छठी मैया वा छठि परमेसरीसँ सम्बद्ध अनेक गीत आ लोककथा प्रचलित अछि।

सहजहिं ई प्रश्न उछैत छैक जे के थिकीह ई छठि परमेसरी? कोन देवीक उपासना हमरालोकनि छठिमे करैत छी आ हुनकासँ आँग-समाँग आ अरुदा मँगैत छी?

एहि प्रश्नक उत्तर तकबाक प्रयास एतए कएल गेल अछि।

एहि परम्पराक सम्बन्ध भविष्यपुराणक एक कथासँ अछि, जाहिमे कार्तिक मासक षष्ठी तिथिकें कार्तिकेय तथा हुनक माताक पूजाक विधान कएल गेल अछि।

भविष्य-पुराणक उत्तरपर्वक 42म अध्यायमे कहल गेल अछि जे कार्तिकेय एही दिन तारकासुरक वध केलनि। तें एहि तिथिकें “कार्तिकेयक दयिता” कहल जाइत अछि। (दयिता=पत्नी)

।।श्रीकृष्ण उवाच।।
येयं मार्गशिरे मासि षष्ठी भरतसत्तम।।
पुण्या पापहरा धन्या शिवा शान्ता गृहप्रिया।।१।।
निहत्य तारकं षष्ठ्यां गुहस्तारकराजवत्।।
रराज तेन दयिता कार्त्तिकेशस्य सा तिथिः।।

एतए उल्लिखित मार्गशीर्ष मास कें अमान्त मास गणनाक कारणें कार्तितक मास बुझबाक चाही। किएक तँ एही अध्यायमे कार्तिक मासक सेहो वर्णन अछि।

एवं संवत्सरस्यान्ते कार्तिके मासि शोभने।
कार्तिकेयं समभ्यर्च्य वासोभिर्भूषणैः सह।।

एहि सम्पूर्ण अध्यायमे कार्तिकेयक पूजाक विधान अछि। एही संग सूर्यक पूजाक सेहो विधान छैक। तें मिथिलाक वर्षकृत्यमे एकर नाम स्कन्दषष्ठी अथवा विवस्वत्षष्ठी सेहो छैक।

कार्तिकेयक जन्मदिन

एक अन्य कथाक अनुसार कार्तिकेयक जन्म सेहो एही दिन मानल गेल अछि। कार्तिकेयक जन्मक कथाक अनुसार कार्तिकक शुक्ल षष्ठी तिथिकें सरपतक जंगलमे जखनि कार्तिकेय नवजात शिशुक रूपमे कानि रहल छलाह तखनि कृतिका हुनका अपन दूध पिआए जीवन देलनि। कृतिकाक शरीर छह भागमे विभक्त छल (वस्तुतः कृतिका नक्षत्रमे छह ताराक उल्लेख अछि) कार्तिकेय ओहि छबो कृतिकाक दूध पीबाक लेल अपन छह मुँह विकसित कएल आ तें हुनक नाम षड्वदन, षण्मुख आ षडानन भए गेल। जें कि हुनका छबो कृतिका दूध पियौने रहथिन्ह तें कार्तिकेयक नाम षाण्मातुर (छह माए वला) भए गेल।

ई घटना सेहो कार्तिक मासक षष्ठी तिथि कें भेल छल, जकर उपलक्ष्यमे भगवान् कार्तिकेयक जन्मदिनक कृत्य होइत अछि।

कार्तिकक सूर्यक नाम थीक कार्तिकेय

वस्तुतः कार्तिक मासक सूर्यकें सेहो कार्तिकेय कहल जाइत अछि। इएह कार्तिकेय तारकासुरक वध कएलनि। एहि वधक लेल हुनका देवताक सेनाक सेनापति बनाओल गेल। ओहो घटना कार्तिक शुक्ल षष्ठी कें भेल छल। एहि प्रसंग भविष्य पुराणमे कहल गेल अछि जे कार्तिकेय एहि दिन देवसेनाक पति बनलाह। एहि अवसर कें कार्तिकेयक विवाहक दिन सेहो मानि लेल गेल अछि।

Chhatha Parva Katha in Maithili
छठिक कथा मैथिलीमे पढू

ओम्हर कार्तिक शुक्ल सप्तमीकें भिनसरमे सूर्यकें अर्घ्य देबाक विधान सेहो छल। हेमाद्रिक अनुसार प्रत्येक मासमे भगवान् सूर्यक विभिन्न रूपक पूजा कएल जाइत अछि- जेना माघमे वरुण, फाल्गुनमे सूर्य, चैत्रमे अंशुमाली, वैशाखमे धाता, ज्येष्ठमे इन्द्र, आषाढ एवं श्रावण मासमे रवि, भाद्रमे भग, आश्विनमे पर्जन्य, कार्तिकमे त्वष्टा, अग्रहणमे मित्र, पौषमे विष्णुक रूपमे भगवान् सूर्यक पूजा होइत अछि। (हेमाद्रि, व्रतखण्ड, अध्याय ११)।

एहि प्रकारें कार्तिक शुक्ल षष्ठी कार्तिकेयक रूपमे सूर्य आ हुनक माता कृतिकाक पाबनि थीक। कृतिकाक सम्बन्ध छह संख्यासँ अछि ओ कार्तिकेयकें जीवन देनिहारि कहौलनि तें सभ बच्चाक रक्षा केनिहारि देवीक रूपमे प्रतिष्ठित भेलीह। हिनके पूजा साठिक रूपमे बच्चाक जन्मक छठम रातिमे होइत अछि। यैह छठी मैया थिकीह, जनिक गीत सूर्योपासनासँ जुडल। ओही देवीसँ अपन बच्चाक लेल आँग-समाँग आ अरुदा माँगल जाइत अछि।

छठि पूजा पद्धति
छठि पूजा विधि एवं व्रतकथा

वस्तुतः छठि परमेसरीक आराधना आ कार्तिक शुक्ल सप्तमीकें सूर्यपूजा दूनू दू पाबनि थीक। छठि परमेसरीक आराधना रातिमे होइत अछि आ स्कन्दक जन्मदिनक अवसर पर हुनक पूजामे सूर्यकें सेहो अर्घ्य देबाक विधान अछि तें ई सभटा घोर-मट्ठा भए वर्तमान छठि पाबनिक स्वरूपमे आएल।

छठ पर्व शास्त्र एवं लोक
छठ-पर्वः शास्त्र एवं लोक-परम्परा

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.