मैथिल कविकोकिल विद्यापतिक लिखल ग्रन्थ ‘दुर्गाभक्तितरंगिणी’ सभ प्रकारेँ प्रामाणिक अछि आ हमरालोकनि जे मैथिल छी तनिका लेल विशेष रूपसँ आदरणीय अछि। एहिमे ओ दुर्गापूजा सैद्धान्तिक आ व्यावहारिक दूनू पक्षक विस्तारसँ विवेचन कएने छथि।
एही ग्रन्थमे देवी दुर्गाकें प्रणाम करबाक मन्त्र संकल्पक संग देने छथि जे देवीक दर्शन करबा काल पाठ करबाक लेल अछि।
संकल्पः
ॐ दीर्घायुरारोग्यसौख्यबहु-संपत्-सुस्त्री-प्राप्तिकामो भगवतीं दुर्गादेवीमहं स्तोष्ये।
चण्डिकां पूजयित्वा तु प्रवृष्टेनान्तरात्मना।
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा इदं स्तोत्रमुदीरयेत्॥
ॐ दुर्गा शिवां शाम्भवीं ब्रह्माणीं ब्रह्मणः प्रियाम्।
सर्वलोकप्रणेत्रीञ्च प्रणमामि सदाशिवाम्॥
मङ्गलां शोभनां शुद्धां निष्कलां परमां कलाम्।
विश्वेवरीं विश्वमातां चण्डिकां प्रणमाम्यहम्॥
सर्वदेवमयीं देवीं सर्वरोगभयाऽपहाम्।
ब्रह्मेशविष्णुनमितां प्रणमामि सदा उमाम्॥
विन्ध्यस्थां विन्ध्यनिलयां दिव्यस्थाननिवासिनीम्।
योगिनीं योगमाताञ्च चण्डिकां प्रणमाम्यहम्॥
ईशानमातरं देवीमीश्वरीमीश्वरप्रियाम्।
प्रणतोऽस्मि सदा दुर्गा संसारर्णवतारिणीम्॥
य इदं पठति स्तोत्रं शृणुयाद्वाऽपि यो नरः।
स मुक्तः सर्वपापैस्तु मोदते दुर्गया सह॥