रॉल्फ फिच का परिचय

रॉल्फ फिच नामक यात्री ने भारत भ्रमण के दौरान आगरा से बंगाल के सतगाँव जाने के क्रम में पटना शहर का भ्रमण किया था।

फिच का जन्म 1550 ई. में हुआ था। भारत का भ्रमण करनेवाला यह पहला इंग्लैंड का पर्यटक एवं व्यापारी था। इसने अकबर के काल में 1581 से 1591 तक भारत का भ्रमण किया।

इस क्रम में भारत में यह गोवा होते हुए आगरा पहुँचा। आगरा के बाद इलाहाबाद, बनारस, पटना होते हुए गंगा नदी के मार्ग से कूचबिहार, चित्तगोंग होते हुए समुद्री मार्ग से पेगू और वर्मा गया।

पटना का विवरण

अपनी इस यात्रा में इसने पटना का वृत्तान्त लिखा है। यह वृत्तान्त सर्वप्रथम 1614 ई. में पुस्तक में प्रकाशित हुआ। इस किताब का नाम है- Purchas his pilgrimage: or Relations of the world and the religions observed in all ages and places dis covered, from the creation unto this present

पटना का विवरण इसके प्रथम भाग में पृष्ठ संख्या 475 पर प्रकाशित हुआ।

रॉल्फ फिच के भारत-यात्रा-वृत्तान्त का सचित्र डच संस्करण भी छपा। इस प्रकाशन का नाम है- Aanmerklyke reys van Ralph Fitch, koopman te Londen, gedaan van anno 1583 tot 1591 : na Ormus, Goa, Cambaya, Bacola, Chonderi, Pegu, Jamahay in Siam, en weer na Pegu: van daar na Malacca, Ceylon, Cochin, en de geheele kust van Oost-Indien by Ralph Fitch. इसका प्रकाशन 1706 ई. में हुआ।

इसके बाद फिच का यात्रा-वृत्तान्त सबसे प्रामाणिक रूप में प्रकाशित करने का श्रेय John Horton Relay को मिला। इसने रिचार्ड हेक्लूइट (1553-1616 ई.) द्वारा स्थापित संस्था में उपलब्ध मूल प्रतियों के आधार पर इसे 1899 ई. में प्रकाशित किया। इसके प्रकाशन का नाम है- Ralph Fitch, England’s Pioneer to India and Bourma, His companions and contemporaries] with his remarkable narrative told in his own words.

इसके बाद विलियम फोस्टर ने Early Travels in India, 1583-1619 नामक पुस्तक में भी आर.फिच के यात्रा-वृत्तान्त को 1921 ई. में प्रकाशित किया।

विशेष जानकारी के लिए पढें- “धर्मायण” अंक संख्या 91

महावीर मन्दिर, पटना की मासिक पत्रिका

जॉन हॉर्टन रिले के द्वारा प्रस्तुत

जॉन हॉर्टन रिले ने इस प्रकार उद्धृत किया है।

“बनारस से मैं गंगा के रास्ते नीचे की ओर पटना गया। इस रास्ते में मैंने अनेक सुन्दर शहरों को और एक फलों-फूलों से भरे देश को पार किया। यहाँ अनेक बड़ी नदियाँ गंगा में मिलती हैं, इनमें से कुछ तो गंगा-जैसी ही बड़ी हैं, जिनके कारण गंगा की चौड़ाई बढ़ जाती हैं, और इतनी बढ़ जाती है कि बरसात के समय आप एक किनारे से दूसरे किनारे को देख नहीं सकते।

जब भारतीयों के अधजले लाश को नदी में बहा दिया जाता है तो पुरुष जल में इस तरह बहते कि उनका मुँह नीचे की ओर रहता है। जबकि औरतों का मुँह उपर की ओर रहता है। मैंने सोचा कि ये ऐसा करने के लिए कुछ बाँध देते हैं, पर उन्होंने कहा कि नहीं।

बाहरी लोगों के द्वारा अपराध की घटनाएँ

इस देश में बहुत चोर हैं। जो अरबियो की तरह मालूम पड़ते हैं, क्योंकि उनका कोई निश्चित घर नहीं है और कभी किसी स्थान पर रहते हैं तो कभी किसी स्थान पर।

पटना का सजी-धजी महिलाएँ

यहाँ की महिलाएँ चाँदी और ताँबा से इतनी सजी-धजी हैं कि देखने में विचित्र लगती है और पैरों के अंगूठों में इस तरह अंगूठी पहनती हैं जिस कारण वे जूती नहीं पहन सकती।

पटना की धऱती से सोना निकालना की घटना

यहाँ पटना में ये सोने इस प्रकार प्राप्त करते हैं। वे धरती में गहरे गड्ढे खोदते हैं और बडी-बडी हाँड़ियों में उस मिट्टी को साफ करते हैं और उसमें सोना पाते हैं और गड्ढा के चारों ओर ईंट लगा देते हैं ताकि मिट्टी न गिरे।

पटना एक व्यापारिक केन्द्र

पटना एक विशाल और महान् नगर है। भूतकाल में वह एक साम्राज्य था, लेकिन अब यह महान् मुगल जलालुद्दीन अकबर के शासन में है। यहाँ के लोग लम्बे और छड़हरे हैं और इनके बीच कई पुरानी लोककथाएँ हैं। इनके घर सामान्य हैं जो मिट्टी के बने हैं तथा खर-पतवार से छाये हुए हैं और रास्ते चौड़े हैं।

इस शहर में कपास, कपास के कपड़े, बहुत मात्रा में चीनी का व्यापार होता है, जिन्हें वे यहाँ से बंगाल और भारत में दूसरी जगहों तक ले जाते हैं। यहाँ बहुत अधिक मात्रा में अफीम और अन्य उत्पाद भी हैं। यहाँ राजा के अधीन तिप्पर दास नाम का प्रमुख व्यक्ति है। लोगों के बीच बहुत इनका बहुत महत्त्व है।

एक धार्मिक व्यक्ति

यहाँ मैंने एक अजीब धार्मिक व्यक्ति देखा जो बाजार में घोड़ा पर बैठा हुआ था लेकिन लगता था जैसे वह सो रहा हो, अनेक लोग उसके पास आते थे और हाथों से उसके पैर छूते थे और तब उसके हाथ को चूमते थे। वे उसे महान् आदमी समझते थे लेकिन मैं निश्चित हूँ कि वह एक आलसी और फूहड़ था, और मैंने उसे वहाँ सोता हुआ ही छोड़ दिया। यहाँ के लोग बड़े ही बातूनी और अजीब पाखण्डी हैं।”
इसका मूल इस प्रकार है-

विशेष विवरण के लिए धर्मायण का अंक पढ़ें

अंगरेजी में मूल उद्धरण

“From Bannaras I went to Patenaw downe the river of Ganges: where in the way we passed many faire townes, and a countrey very fruitfull: and many very great rivers doe enter into Ganges, and some of them as great as Ganges, which cause Ganges to bee of a great breadth, and so broad that in the time of raine you cannot see from one side to the other.

These Indians when they bee scorched and throwen into the water, the men swimme with their faces downewards, the women with their faces upwards, I thought they tied something to them to cause them to doe so: but they say no. There be very many thieves in this countrey, which be like to the Arabians: for they have no certain abode, but are sometime in one place and sometime in another.

Here the women bee so decked with silver and copper that it is strange to see, they use no shooes by reason of the rings of silver and copper which they weare on their toes.

Here at Patanaw they finde gold in this maner. They digge deepe pits in the earth, and wash the earth in great bolles, and therein they finde the gold, and they make the pits round about with bricke, that the earth fall not in.

Patenaw is a very long and a great towne. In times past it was a kingdom, but now it is under Zelabdim, Echebar the great Mogor. The men are tall and slender, and have many old folks among them: the houses are simple, made of earth and covered with strawe, the streets are very large. In this towne there is a trade of cotton, & cloth of cotton, much sugar, which they cary from hence to Bengala and India, very much Opium & other commodities. He that is chiefe here under the king is called Tipperdas, and is of great account among the people.

Here in Patenau I saw a dissembling prophet which sate upon an horse in the market place, and made as though he slept, and many of the people came and touched his feete with their hands, and then kissed their hands. They tooke him for a great man, but sure he was a lassie lubber. I left him there sleeping. The people of these countries be much given to such prating and dissembling hypocrites.”

विलियम फोस्टर इंडिया ऑफिस के पदाधिकारी एवं हक्लूइत सोसायटी के सम्मानित सचिव थे। हर्टन ने भी उन्हीं के द्वारा उपलब्ध करायी गयी सामग्री का संकलन किया। इसके आधार पर फिच के वृत्तान्त पर आधारित पुस्तक तैयार की। बाद में विलियम फोस्टर ने भी अनेक यात्रियों के वृत्तान्तों को संकलित कर अलग से Early travels in India नामक पुस्तक लिखी। अत: इन दोनों के विवरण एक ही है।

अकबर के काल में पटना का अधिकारी त्रिपुरा दास

केवल एक स्थान पर Tipperdas नामक व्यक्ति की पहचान फोस्टर ने त्रिपुरा दास से रूप में किया है, जो सूचनाप्रद है।

अत: यहाँ विलियम फोस्टर और हर्टन रिले में से केवल हर्टन के उद्धरण को यहाँ संकलित किया गया है।

परचास द्वारा प्रकाशित वृत्तान्त हलाँकि सबसे पुराना है, किन्तु पटना के वर्णन क्रम में उसने कुछ ऐसे अंश को भी पटना का ही वृत्तान्त माना है, जिसे हर्टन ने दूसरे स्थानों का वृत्तान्त माना है।

इस प्रकार रॉल्फ फिच के प्रामाणिक उल्लेख से पटना शहर के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है। 1586ई. के आसपास पटना के प्रमुख प्रशासक का नाम त्रिपुरा दास था।

पटना की महिलाएँ चाँदी और ताम्बों के गहनों से लदी रहती थीं। पैरों में इतनी अंगूठियाँ पहनतीं थीं कि उनके लिए जूती पहनना सम्भव ही नहीं था। यहाँ मिट्टी से लोग सोना निकालते थे।

फिच ने जिस प्रकार से सोना निकालने का वर्णन किया है उससे स्पष्ट है कि यहाँ की मिट्टी में सोने की खान है। अतः लोग उस गढ़े को ईंट से मढ़ देते थे ताकि मिट्टी न गिरे।

साथ ही, पटना एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था, जहाँ से कपास, सूती कपड़े तथा चीनी का निर्यात होता था।

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