वर्ष भर में 12 राशियों की संक्रान्तियाँ होतीं हैं। इनमें मकर संक्रान्ति से छह महीने तक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तथा कर्क राशि की संक्रान्ति से दक्षिणायन सूर्य आरम्भ होते हैं। उत्तरायण सूर्य में यज्ञ, देवप्रतिष्ठा आदि के लिए शुभ मुहूर्त होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जबतक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तब तक छह महीनों के लिए देवताओं का दिन रहता है तथा दक्षिणायन सूर्य के महीनों में देवताओं की रात रहती है। अतः मकर संक्रान्ति का यह दिन देवताओं के लिए प्रातःकाल माना जाता है। दिन भर में जो धार्मिक महत्त्व प्रातःकाल का होता है, वैसा ही महत्त्व मकर संक्रान्ति का भी वर्ष भर में होता है।

इस वर्ष दिनांक 14 जनवरी की रात्रि 8.34 मिनट पर संक्रमण हो रहा है। चूँकि संक्रमण काल रात्रि में भी हो सकता है; अतः धर्मशास्त्रियों ने संक्रमण काल के आधार पर पुण्यकाल तथा पुण्याह की व्यवस्था की है।

गणित-ज्योतिष के अनुसार संक्रान्ति के पहले या बाद 8 घंटा तक सूर्य का बिम्ब उस संक्रान्ति-बिन्दु पर रहता है। अतः संक्रमण-काल से 8 घंटा पहले अथवा बाद, जब भी उदित सूर्य मिलें, पुण्यकाल माना जायेगा। इस वर्ष रात्रि 8:34 बजे संक्रमण के पूर्व दिनांक 14 को हमें सूर्य-संक्रान्ति का बिम्ब प्राप्त होगा, अतः संक्रान्ति सम्बन्धी गणित के अनुसार भी 14 को ही मनाया जाना चाहिए।

मकर संक्रान्ति 2022 में सूर्य बिम्ब के गणित से पुण्यकाल का रेखांकन

ऊपर दिये गये चित्र में हम देखते हैं कि सूर्य का बिम्ब दिन में 14 को ही पड़ रहा है। संक्रमण काल से 8 घंटा आगे तक तो रात्रि ही रहती है। सूर्योदय का उदय नहीं हुआ रहता है। 14 जनवरी को दिन के 12:30 से सूर्यास्त पर्यन्त रवि-बिम्ब हमारे शरीर पर पड़ता है। अतः पूर्व दिन ही, 14 जनवरी को मध्याह्न के बाद पुण्यकाल होना चाहिए।

मिथिला के सभी निबन्धकारों ने एकमत से निर्णय दिया है कि आधी रात से पहले यदि संक्रमण है, तो पुण्यकाल पूर्वदिन मध्याह्न के बाद होगा तथा वह पूरा दिन पुण्याह कहलायेगा। इन सभी प्रमाणों का संकलन कर म.म. मुकुन्द झा बख्शी ने ‘पर्वनिर्णय’ में यही व्यवस्था दी है। अतः मिथिला से प्रकाशित पंचाङ्ग में दिनांक 14 को मकर संक्रान्ति माना गया है।

लेकिन अनेक आचार्यों का मत है कि यदि सूर्यास्त हो जाने के बाद संक्रमण हो तो अगले दिन पुण्यकाल माना जाना चाहिए। गणितीय स्थिति जो कुछ भी हो, हमें उन पूर्वाचार्यों के मत को सम्मान देना चाहिए। इस मत से 15 जनवरी को पुण्यकाल मध्याह्न से पूर्व रहेगा। जो जिस क्षेत्र के हैं, उन्हें अपनी परम्परा का पालन करना चाहिए।

इस प्रकार, जिस पंचांग से जो व्यक्ति अन्य धार्मिक कर्म कर रहे हैं, उस पंचांगकार ने जो तिथि लिखी है, उसे मानना उनका धर्म है। उन्हें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।

निर्णयसिन्धु में कमलाकर भट्ट ने मकर-संक्रान्ति के सम्बन्ध में सभी मतों को उद्धृत कर दिया है, जिनमें माधव का मत है कि यदि रात्रि में संक्रमण हो तो दूसरे दिन पुण्यकाल माना जाए। किन्तु अनन्तभट्ट के अनुसार यदि आधी रात से पूर्व संक्रमण हो तो पूर्व दिन माना जाए। इस प्रकार कमलाकर में अपना कोई निर्णय नहीं दिया है। धर्मसिन्धुकार का मत है कि रात्रि के पूर्वभाग, परभाग अथवा निशीथ में संक्रमण हो तो दूसरे दिन पुण्यकाल होगा। इस मत से दिनांक 15 को मकर संक्रान्ति होगी।

इस विषय में कमलाकर भट्ट ने भी क्षेत्रीय परम्पराओं का महत्त्व दिया है, अतः धर्मशास्त्र के अनुसार जिनकी जो परम्परा है, वे उस दिन मनायेंगे। किसी भी परम्परा को हम गलत नहीं कह सकते हैं। भारत की गरिमा रही है- महाजनो येन गतः स पन्थाः।

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