ॐ नमो गणेशाय॥
अथ वाजसनेयिनां सन्ध्योपासनम्।।
जल हाथ में लेकर – ॐ तत्सत् ॐ तत्सत् ॐ तत्सत्।
पूर्वोत्तर कोण की ओर मुँह कर आचमन कर शिखा बाँधकर फिर दो बार आचमन कर वाम भाग में कुश रखें और दाहिने हाथ में तेकुशा लेकर –
अघमर्षणसूक्तस्याघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृतो देवताश्वमेधावभृथे विनियोगः।।
ॐ ऋतञ्च सत्यञ्चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत।
ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः॥१॥
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत।
अहो रात्राणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी॥२॥
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्।
दिवञ्च पृथिवीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः॥३॥
इस मन्त्र से दाहिने हाथ में जल लेकर अभिमन्त्रित कर पुनः आचमन करें। हाथ में जल लेकर एकबार गायत्री जप कर –
ॐ आपो माममिरक्षन्तु
इस मन्त्र से अपने चारों ओर घुमाकर जल छिड़क लें।
अंजलि मुद्रा में-
ॐकारस्य ब्रह्मऋषि र्गायत्री छन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः।
सप्तव्याहृतीनां प्रजापति ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपंक्तिस्त्रिष्टुब् जगत्यः छन्दांसि अग्नि-वाय्वादित्य-बृहस्पति-वरुणेन्द्र-विश्वेदेवा देवता अनादिष्टप्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः॥
गायत्र्या विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवताग्निर्मुखमुपनयने प्राणायामे विनियोगः॥
शिरसः प्रजापति ऋषिर्ब्रह्माग्नि वायुसूर्या देवताः यजुः प्राणायामे विनियोगः॥
इस प्रकार ऋषि, देवता एवं वेद के छन्दों का ध्यान कर तीन बार प्राणायाम करें। प्राणायाम में अपने शरीर की नाभि पर श्याम वर्ण के भगवान् विष्णु का ध्यान करें। हृदय पर कमलासन पर बैठे ब्रह्माजी का ध्यान करें तथा शुद्ध स्फटिक के समान श्वेत वर्ण के भगवान् शंकर का ध्यान अपने मस्तक पर करें।
प्राणायाम का मन्त्र इस प्रकार है –
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ आपो ज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवःस्वरोऽम्।
प्राणायाम की विधि इस प्रकार है कि नाक के दाहिने छिद्र को अंगुष्ठा से बंद कर तीन बार जप करें। इस समय वायें छिद्र से साँस भरें। पुनः कनिष्ठा मध्यमा एवं तर्जनी से वायें नाक को भी बंद कर साँस रोकते हुए तीन बार जप करें। फिर अंगुष्ठा को दाहिने नाक से हटाकर साँस छोड़ते हुए तीन बार जप करें।
इस प्रकार प्राणायाम कर आचमन कर –
सूर्यश्चमेति ब्रह्मऋषिः प्रकृतिश्छन्दः सूर्यो देवता प्रातराचमने विनियोगः।
ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पन्तु। यत्किञ्चिद् दुरितम्मयि इदमहमापोऽमृत योनौ
सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा।
इस मन्त्र से फिर एक बार प्रातःकाल का आचमन करें।
आपः पुनन्त्विति विष्णुर्ऋषिरनुष्टुप् छन्द आपो देवता मध्याह्नाचमने विनियोगः।
ॐ आपः पुनन्तु पृथिवीं पृथ्वी पूता पुनातु माम्।
पुनन्तु ब्रह्मणस्पतिर्ब्रह्मपूता पुनातु माम्॥
यदुच्छिष्टमभोज्यं च यद्वा दुश्चरितं मम।
सर्वं पुनन्तु मामापो असतां च प्रतिग्रहम्॥ स्वाहा।
इस मन्त्र से एक बार मध्याह्न काल के लिए आचमन करें।
अग्निश्चमेति रुद्र ऋषिः प्रकृतिश्छन्दोऽग्निर्देवता मध्याह्नाचमने विनियोगः।
अग्निश्चमामन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्तां यदह्ना पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पन्तु। यत्किञ्चिद् दुरितम्मयि इदमहम्माममृत योनौ सत्ये ज्योतिषि
जुहोमि स्वाहा।
इस मन्त्र से एक बार सायंकाल के लिए आचमन करें।
बायें हाथ में जल लेकर –
आपोहिष्ठेत्यादिचस्य सिन्धुद्वीप ऋषिर्गायत्री छन्द आपो देवता अपामार्जने विनियोगः।
ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऽऊर्जे दधातन । महेरणाय चक्षसे।।।
ॐ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयते ह नः। उशतीरिव मातरः।।
ॐ तस्मा ऽअरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः।।
द्रुपदादिवेति कोकिलो राजपुत्र ऋषिरनुषटुप् छन्द आपो देवता मार्जने विनियोगः।
ॐ द्रुपदादि मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलादिव।
पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः सुन्धन्तु मैनसः॥
इस मन्त्र से दाहिने हाथ की अनामिक एवं अंगुष्ठा से जल लेकर तीन बार मस्तक पर छिड़कें। पुनः हाथ में जल लेकर उस जल में नाक सटाकर –
अघमर्षणसूक्तस्याघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तो देवताश्वमेधावभृथे विनियोगः॥
ॐ ऋतञ्च सत्यञ्चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः॥१॥
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत। अहो रात्राणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी॥२॥
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्। दिवञ्च पृथिवीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः॥३॥
इस मन्त्र से जल का त्यागकर आचमन करें।
अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुप् छन्द आपो देवताचमने विनियोगः।
ॐ अन्तश्चरसि भूतेष गुहायां विश्वतो मुखः।
त्वं यज्ञस्त्वं वषट् कारमापोज्योतीरसोऽमृतम् ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्॥
पुनः आचमन कर चन्दन, फूल और जल हथ में लेकर गायत्री और सावित्री मन्त्र जप करते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
इसके बाद खड़ा होकर प्रातःकाल अथवा सन्ध्याकल यदि सन्ध्यावन्दन कर रहे हों तो अंजलि बाँधकर मध्याह्न में करते हों तो दोनों हाथ ऊपर उठाकर सूर्योपस्थान करें –
ॐ उद्वयमित्यस्य हिरण्यस्तूपऋषिरनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।
ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्य मगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
ॐ उदुत्यमित्यस्य प्रस्कणु ऋषिर्गायत्रीछन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।
ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्।
चित्रमित्यस्य कौत्सऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।
ॐ चित्रन्देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः।
आ प्रा द्यावा पृथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥
तच्चक्षुरिति दध्यङ्गिरोऽथर्वण ऋषिरक्षरातीतपुर उष्णिक् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः।
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।
आसन पर बैठकर –
ॐ भूः हृदयाय नमः। मध्यमा अनामिका एवं कनिष्ठा इन तीन अंगुलियों से हृदय का स्पर्श करें।
ॐ भुवः शिरसे स्वाहा। मध्यमा अनामिका एवं कनिष्ठा इन तीन अंगुलियों से मस्तक का स्पर्श करें।
ॐ स्वः शिखायै नमः। मध्यमा अनामिका एवं कनिष्ठा इन तीन अंगुलियों से शिखा का स्पर्श करें।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि नेत्रत्रयाय वौषट्। मध्यमा अनामिका एवं कनिष्ठा इन तीन अंगुलियों से तीन नेत्रों (अनामिका से बायाँ, कनिष्ठा से दायाँ तथा मध्यमा से दोनों भौहों के बीच) का स्पर्श करें।
ॐ धियो यो नः प्रयोदयात् अस्त्राय फट्। मध्यमा अनामिका एवं कनिष्ठा इन तीन अंगुलियों को दाहिना होते हुए पीछे से होकर बायीं ओर से घुमाते हुए बायें हाथ की तलहत्थी पर इस प्रकार ताल दें कि आबाज निकले।
इसके बाद कमसे कम दस बार गायत्री जपें। यथाशक्ति जपकर
ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्रि त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।
इस मन्त्र से गायत्री देवी को प्रणाम कर हाथ में जल लेकर –
ॐ उत्तरे शिखरे जाते भूम्यां पर्वतवासिनि।
ब्रह्मणा समनुज्ञाते गच्छ देवि यथा सुखम् ।।
इस मन्त्र से गायत्री देवी का विसर्जन करें
समाप्त
आदरणीय प्रणाम, कृप्या छांदोग्य शाखा के लिए भी संध्या वंदन विधी बताए।