अखनि अंतिकाक संपादकीय सोझामे अछि। कहैत छै जे जखनि भीड़मे अशान्ति पसरैत अछि तखनि दू प्रकारक लोक सक्रिय भए जाइत छथि- एकटा एहन लोक रहैत छथि जे चाहैत छथि जे ई अगराही कहुना रुकए आ किछु एहनो लोक होइत छथि जे आगि लेसबाक सदति प्रयास करै छथि। हुनकर आगि ओतहि प्रभावी होइत अछि जतए आम जनताक भीड़ होइत छैक। एहने एकटा अगिलेसुआक उदाहरण हमरा सोझाँ अछि- अंतिकाक संपादकीय

ई कोन कोन बात झूठ प्रचारित करैत छथि आ तकर केना व्याख्या करैत छथि से देखल जाए-

“ब्राह्मणेतर आ स्त्रीक दृष्टिकोण सँ देखल जाय तँ मिथिला सदा सँ वर्चस्वशालीक समर्थक, कमजोर के सतबैवला, अनुदार आ असहिष्णु समाज रहल अछि।”

एहि कथनक उदाहरण हुनका नहिं भेटलनि। वस्तुतः ई एकटा सामान्य कथन थीक जकर प्रयोग 19म शताब्दीसँ आइ धरि अगिलेसुआ सभ करैत रहलाह अछि। ई सम्पादकक अपन मन्तव्य थीक, जकर हुनका लग कोनो उदाहरण नै छनि। जे मिथिला पहिल बेर नारीकें सभामे शास्त्रार्थक लेल उपस्थित कएलक (गार्गी, मैत्रेयी) जाहि मिथिलाक याज्ञवल्क्य शतपथ ब्राह्मणक सभ स्थल पर सभक लेल सोचैत रहलाह आ तें केवल अपना लेल सोचनिहार अत्यन्त क्रोधी, भ्रूण कें तोड़निहार ब्राह्मण कहोड कें सेहो नै छोड़लनि ओहि याज्ञवल्क्य आ हुनक मिथिलाक प्रति एहन विष-वमन किएक?

“पौराणिक साहित्य में एक जनक (विश्वामित्र सेहो) भेटैत छथि जे ब्राह्मणेतर होइतो अपन शक्ति-सामर्थ्यक बल पर ब्राह्मण बनलाह आ ब्राह्मणक सत्ता के मजबूत करैत रहलाह।”

ई तँ सम्पादकक परम अज्ञानता थीक। पौराणिक साहित्य मे विश्वामित्र कें जनक कतए कहल गेल अछि से उद्धरण देथु। जनक सभ दिन मिथिलाक राजाक लेल प्रयोगमे अबैत रहल। एतए ओ विश्वामित्रक सम्बन्धमे क्षत्रिय आ राजाक प्रयोग नै कए ब्राह्मणेतर शब्दक प्रयोग कएलनि। जखनि कि ओ ब्राह्मणेतर शब्दक प्रयोग सभ ठाम दलितक लेल करैत छथि।

“मतलब ई जे सामर्थ्य हो तँ सब नियम-कानून के कोठीक कान्ह पर राखल जा सकैछ! जनकक दरबार मे पहुँचल अष्टावक्रक पिता कहोड़ के बंदी सँ शास्त्रार्थ मे परास्त भेलाक बाद जल मे डूबेबाक जे प्रसंग अबैत अछि, ताहि सँ ई तँ सहजे अनुमान लगाओल जा सकैछ जे हुनक जेल कालापानी वला जेल सन भयानक रहल हैत।”

सम्पादक कहोड़क प्रसंग लिखैत हुनका राजसत्ताक द्वारा शोषित मानैत छथि। कहोड़क पूरा परिचय बुझने विना ई केवल अगिलेसुआक कथन थीक।

कहोड़ कल्याणीक संग विवाह कएल,जनिका ओ सभ दिन दुखे दैत रहलाह। गृहस्थ रहितो पत्नीक भरण-पोषण करबाक लेल उद्योग नै कएलनि। जखनि राजा जनकक दरबारसँ सत्रयज्ञक घोषणा भेल तखनि शतपथ ब्राह्मणक कथाक अनुसार ओ विना परिश्रमक धन पएबाक लोभमे राज दरबार जएबाक निर्णय लेल। हुनका बुझल छलनि जे राजाक दरबारमे शास्त्रार्थ होएत तें ओ आधा रातिअहुमे वेदपाठ करए लगलाह। भरि साल टंडैली दए वला विद्यार्थी जेना परीक्षाक एक राति पहिने पढ़ैत अछि। गर्भवती पत्नीक गर्भसँ बच्चा टोकलकनि जे एखनि पढबाक समय नै अछि, तँ क्रोधित भए ओकरा खण्डित कए देल।

गर्भसँ ओएह बच्चा फेर टोकलकनि- “वेदक अशुद्ध उच्चारण जुनि करी।” तखनि ओ फटकारि देलनि- “बपजेठ बनै छें तों!” आ ओहि गर्भ पर तेहन चोट कएलनि जे ओ आठ ठाम टेढ़ भए अष्टावक्रक रूपमे जन्म लेलक।

जँ आधुनिक शब्दमे कहल जाए तँ पत्नीक गर्भ पर तेहन लात मारलनि जाहिँ सँ गर्भस्थ शिशु आठ ठाम विखंडित भेल। एहन क्रोधी, पत्नीहंता, गर्भस्थ शिशुक हंता आ सभटा वस्तु समेटि लेनिहार लोभी कहोड़ अपन क्रोधक कारणें सभामे बंदी नामक विद्वान् सँ पराजित भेलाह। तथापि हुनका जलमे डुबाए पाताललोकक सत्रयज्ञ मे पठा देल गेल।

शतपथ ब्राह्मणक दोसर काण्डक चारिम अध्यायक तेसर ब्राह्मणमे कहोड आ याज्ञवल्क्यक बीच संवाद अछि। संपादक ओकरा पढ़थु आ देखथु कहोडक ओ कथन जे “संसाधन सभक लेल नहि थीक केवल ब्राह्मणक लेल थीक।” ओ एहन उपाय रचैत छथि जाहिसँ ओएह सभटा हँसोथि लेथि।

एहन क्रूर, स्वार्थी, क्रोधी, असामाजिक एक ब्राह्मण कें जँ राजाक द्वारा दण्डित कएल गेल तँ ई की मिथिलाक गौरव नै? आ राजा जनकक जनहित कार्यक उदाहरण नै!!

एतए संपादक कहोडकें शोषित मानैत छथि जखनि कि वस्तुतः ओ समाजक लेल स्वयं एक कोढ़ छलाह, हुनका दण्डित करब की राजाक सामाजिक सहानुभूति नै!

वास्तव मे बिन पढल अगिलेसुआ संपादकक ई कथन थीक

“माने वास्तव मे अजुके जकाँ सब दिन राजा सभ क्रूर आ आततायी होइ छल, मुदा हुनका लेल विशेषण गढ़ल जाइत छल- दानवीर, न्यायप्रिय, प्रजावत्सल, परम विद्वान, महाज्ञानी आदि-…… तखन दक्षिण अंग-प्रदेश, पश्चिम बज्जिका क्षेत्र आ पूब सुरुजापुरी इलाका पार क’ बांग्लादेश धरिक भाषा के ओ सभ मैथिली आ संपूर्ण क्षेत्र के मिथिला कहताह। मुदा व्यावहारिक जीवन मे हिनका लोकनिक देल गेल ‘दछिनाहा’, ‘पछिमाहा’, ‘पूबा-डूबा’, ‘रड़हा’, ‘सोलकन्हा’, ‘मुसलमानी’ बोली सन-सन नाम हिनक मानसिकता के उजागर क’ दैत अछि।”

मैथिलीक जाहि स्वरूपक ओ विरोध करैत छथि ओही स्वरूपक व्यवहार जखनि सम्पादक स्वयं करैत छथि, तखनि ऊपरमे लिखल सभटा बात केवल, बुढ़ियाक फूसि थीक, आगि लगएबाक साधन थीक आ एकरे कहैत छै- अगिलेसुआक कथा।

मिथिलाक लेल कएल जाइत सभटा प्रयास कें ई खण्डित करबाक कुचेष्टा करैत छथि। अपन भाषा पहिने बदलथु! जाहि शैलीक ओकालति करैत छथि, ओहि शैलीमे लीखि छापथु ने, मैथिलीक उपकार होएत।

“वास्तव मे ई सब घृणाक व्यवसायी छथि आ एखनो जन-विरोधी भूतपूर्व राजा (दरभंगा महाराज)क गुणगान करैत नईं थकै छथि। ई ओहने लोकक फौज थिक जे देशक वर्तमान निजामक जन-विरोधी कार्यक गुणगान करैत लाज नइँ अनुभव करैत अछि।”

ई  दरभंगाक राजा लोकनिकें जन-विरोधी कहैत छथि। सम्पादक कें ई नै बुझल छनि जे सन् 1887 ई.मे यूरोपक महारानीक जुबली वर्ष मनाओल गेल छल जाहिमे भारतक विभिन्न स्थान पर हर्षोल्लासक संग कार्यक्रम करबाक छलैक। भारतक सभ नगरमे एहन कार्यक्रम आयोजित भेल छल। आन आन ठाम जे कार्यक्रम भेल मुदा दरभंगाक शासन क्षेत्रमे गरीब सभक बीच कम्बल, खोराकी आ खपड़ा खराँतक रूपमे बाँटल गेल। सामान्य जनताक उपयोगक लेल किछु स्थायी काज कराओल गेल, जेना कमलाक पुरान धारमे पक्का घाटक संग पोखरि खुनाओल गेल। एहन-एहन उदाहरण ढेर भेटत।

राज दरभंगा द्वारा जनहित काजक एक उदाहरण।

विना पढ़ने विना बुझने संपादक अनेरे आगि लेसि रहल छथि। एकरे कहल जाइत छैक अगिलेसुआक कथा।

“सहिष्णु समाजक निर्माण लेल पहिल जरूरत अछि जे साहस पूर्वक सत्यक स्वीकार कयल जाय। फेर व्यावहारिक रूप में स्त्री, दलित, पिछड़ा आ मुसलमान के अपने-सन बुझि बराबरीक बर्ताव होअय।”

की सम्पादक कें ई नै बुझल छनि जे मिथिलाक समाज अपन बेटी कें पहिल सोहाग धोबिन सँ दिअबैत अछि? की हुनका नै पता छनि जे मिथिलाक समाज मुसलमानक दाहाक संग मर्शिया गबैत अछि, घरक महिला जेना तुलसी चौरा पर जल ढारैत छथि तहिना दाहा पर सेहो जल चढबैत छथि?

की संपादक कें नै बुझल छनि जे मिथिलाक समाज में  कोनो नारी जँ बूढो लोकक पयर छुबैत छथि तँ ओ बूढ हाथ जोड़ि अभिवादन करैत छथि।

वास्तविकता अछि जे ई वामपंथ समाजक एक कोढ़ थीक, जे पहिने अपन परम्पराकें गरियबैत अछि, ओकरा छोड़ैत अछि आ तखनि ओकर अभावक कल्पना करैत पूरा समाज कें गरियबैत अछि। ओ मात्र शून्यताक स्थिति उत्पन्न करबाक लेल प्रयासरत संस्था थीक। ओकरा लग निर्माणक कोनो योजना नै छै। ई थीक अगिलेसुआक कथा।

“सामाजिक रूप में केओ ककरो सँ मिसिओ भरि हीन कमजोर आकि तुच्छ नई अछि। संघर्षक इतिहास परजीवी सत्तापोषकक नइँ, स्त्री-दलित सन श्रमजीवी वर्गक रहल अछि। जनभाषा के पंचकोसीक ब्राह्मण नइँ, ओ निरक्षर जन-समुदाय अपन कंठ मे बचाक’ रखलक अछि जे एकर नामो नई जानै अछि। कुलीन वर्ग मात्र देखाउंस लेल एकर गौरव करै अछि, श्रमजीवी वर्गक त ई ओढ़ना-बिछौना छिए आ ओढ़ना-बिछौना पर गौरव करब श्रमजीवी समाज नइँ जानलक अछि। समाज के देखैक दृष्टि मिथिलामक टिटिम्हा सँ नइँ, श्रमजीवी वर्गक खून-पसेनाक इतिहास सँ भेटत।”

जनभाषाक वकालत करब नीक बात थीक। भाषामे व्यापकता अएबेक चाही। कोनो व्यापक भाषाक एक शैलीक नामकरण करब की थीक? आइ जखनि हमरालोकनि मिथिला, मैथिलीक लेल समवेत प्रयास मे लागल छी तखनि ई नामकरण किएक। भारतक भाषिक समस्याक ई सभसँ पैघ कारण थीक- एक क्षेत्रगत विशेषताक लेल अलग नामकरण। अंगिका, बज्जिका आदि सेहो एहने प्रवृत्ति थीक। तखनि ई पचपनियाक प्रचार किएक? ई एकटा विचारणीय मुद्दा थीक, जाहि पर भाषाशास्त्री लोकनि विचारथु।

हम तँ तत्काल एतबे कहब जे ई थीक अगिलेसुआ प्रवृत्ति, जे एक जिस भारतकें विखण्डित करबाक लेल केन्द्र स्तर पर चलाओल जा रहल अछि तँ दोसर दिस मिथिला आ मैथिलीक एकता आ अक्षुण्णताकें खण्डित करबाक लेल ई सम्पादकीय लिखल गेल अछि।

जय मिथिला जय मैथिली

गोनू झा क नबका नाम गुणानंद झा, मिथिलाक इतिहास सँ एकटा मजाक
केसरिया स्तूपक दशावतार मूर्ति केना गायब कए देल गेल

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