मिथिलाक्षरक मानकीकरणमे समस्या आ समाधानक दिशा
हमरालोकनि देखि चुकल छी जे 10म शतीसँ 19म शती क पूर्वार्द्ध धरि मिथिलाक्षरक स्वरूप अपरिवर्तित रहल अछि। केवल द अक्षरमे विशेष परिवर्तन भेल जे नागरीक समान रूप छोडि लगभग 15म शतीमे अपन वर्तमान स्वरूपमे आबि गेल। भ अक्षर 12म शतीक लगपासमे अपन वर्तमान स्वरूपमे आबि गेल। शेष अक्षर आ संयुक्त करबाक विधि 10म शतीसँ आइ धरि समाने रहल अछि।
आइ मानकीकरणक पहिल समस्या अछि जे 1850 ई.क बाद मिथिलाक्षरक जे स्वरूप हमरालोकनि पबैत छी ओकरा मानक मानल जाये अथवा 10म शती सँ 1850 धरि जे अपन मौलिक स्वरूप अछि तकरा मानक मानल जाये?
लिपिक इतिहास कहैत अछि जे 18म शती धरि बंगला आ मिथिलाक्षर एके रहल। हलन्त लगएबाक शैली, अनुस्वारक शैली आदिमे किछु परिवर्तनक संग बंगला ओहि समयमे अलग भेल जहिया इस्ट इंडिया कम्पनी बंगालमे पुस्तक मुद्रणक लेल 1786 ई.मे काँटाक निर्माण करओलक। एकर बाद छपल पुस्तक मिथिलो क्षेत्रमे उपलब्ध भेल आ मैथिल पंडितक घरमे पढ़ल जाए लागल। हुनकालोकनिकें कतहु कोनो असुविधा नहिं भेलनि आ छपल पुस्तकक स्पष्टता मोहित केलकनि। हुनकालोकनिकें बुझएलनि जे ई तँ हमरहि अक्षरक छापा थीक, मिथिलाक्षरे थीक।
मुदा दोसर पीढी तँ ओएह छापाक स्वरूपकें सिखलक आ शनै शनैः मिथिलाक्षरमे बंगलाक छापाक प्रभाव घोंसिआइत गेल।
तकर बादो 1850 ई. धरि बहुत गोटे अपन पुरान स्वरूप कें नहिं छोडने रहथि, तें दरभंगासँ प्राप्त छत्रसिंहक शिलालेख मे हमरालोकनिकें प्राचीन स्वरूपक दर्शन होइत अछि।
एहि कालक बहुत पाण्डुलिपि अछि जाहिमे श, ण, र, अ, आदि अक्षर अपन पुराने स्वरूपमे अछि।
एतय मूल अक्षरक विभिन्न लोक द्वारा गृहीत शैली देखल जा सकैत अछि आ बंगलाक संग सेहो ओकर तुलना प्रस्तुत अछि।

पाठक स्वयं विचारि सकैत छथि जे आइ जखनि हमरालोकनि कें अपन स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित करबाक काज अछि तँ कोन स्वरूप कें ग्रहण कएल जाए।
एतय ध्यातव्य अछि जे 20म शतीक उत्तरार्द्धमे जखनि मिथिलाक्षर विलुप्त होमय लागल तखनि किछु अनुरागीलोकनि मिथिलाक्षरक शिक्षाक लेल पुस्तक लिखलनि, जाहिमे डा. विश्वनाथ झाक पुस्तक सभसँ अधिक चर्चित रहल। पहिल बेर ग्रन्थालय प्रकाशन, टाबर चौक दरभंगासँ एकर मुद्रण भेल दोसर बेर मैथिली साहित्य परिषद्, दरभंगा एकर 10 हजार प्रति प्रकाशित केलक जकरा कारणें ई उपलब्धताक दृष्टिसँ सभसँ अधिक विख्यात भेल। एकर अतिरिक्त श्रीमती आद्या झाक पुस्तक मिली अकादमीसँ प्रकाशित भेल। एहि पुस्तिका सभक लेखक आ लेखिका 20म शतीक बंगला प्रभावित स्वरूपकें ग्रह्ण केलनि फलतः उ, ऊ, ग, च, छ, ज, ण, ब, र, ल, व, श एवं ह अक्षर पर बंगलाक पूरा प्रभाव पडल आ मिथिलाक्षर बंगलाक अनुरूप भए गेल।
श्रीमती आद्या झाक पुस्तक मे बहुत हद धरि प्राचीन रूप रहल किन्तु डा. झाक पुस्तकमे अक्षरक स्वरूप पूर्णतः बंगलाक आबि गेल। ओ स्वयं बंगलाक माटि-पानिसँ भीजल लोक रहथि आ अपने जेना जनैत रहथि ओही प्रकारसँ पुस्तकक निर्माण कए देलनि।
एकरा संगहिं ई भ्रान्ति सेहो पसरि गेल जे मिथिलाक्षर बंगलाक समान अछि अथवा ई बंगला अक्षर थीक। माय आ बेटीमे जतबा आनुवंशिक समानता होइत छैक से तँ रहबे करतैक, मुदा एतेक समानता नहिं, जाहिसँ मायक पहिचान मेटा जाये। जे व्यक्ति ने तँ मिथिलाक्षर जनैत रहथि आ ने बंगला, ओ एहि गप्पकें हवा देलनि जे मिथिलाक्षर आ बंगला एकहि थीक।
जें कि डा. विश्वनाथ झाक पुस्तक सभसँ लोकप्रिय रहल तें कम्प्यूटरक लेल जखनि फोंट निर्माण भेल तँ ओही बंगला प्रभावित अक्षरक उपयोग कएल गेल।
एकर विपरीत 2004मे जखनि दरभंगासँ डा. विनय झा अपन फोंट बनौलनि तखनि ओ बहुत हद धरि विश्वनाथ झाक पुस्तकसँ अलग हटि कए प्राचीन स्वरूपकें ग्रहण केलनि। हुनक मिथिलाक्षर 1, मिथिलाक्षर 2 एवं मिथिलाक्षर 3 के नाम सँ हस्तलिखित शैलीमे बनल फोंट मिथिलाक्षरक प्राचीन धाराक अनुरूप अछि।
2011 ई.मे सूर्यलक्ष्मी नामसँ एक फोंट बनल तँ ओहो बंगलासँ काफी हद धरि प्रभावित रहल।
यूनिकोड आधारित फोंट जानकी नेपालसँ बनल तँ ओहूमे इऐह स्थित रहल।
मोटा-मोटी 20म शतीक उत्तरार्द्धमे जे कोनो प्रयास मिथिलाक्षरक लेल भेल ओहिमे बंगलाक शैली प्रभावी रहल आ 1850 धरिक मूल स्वरूप समाप्त भए गेल। महाकवि चन्दा झा धरि जे अक्षर स्वरूप छल सेहो बिला गेल।
तें आइ आवश्यकता एहि बातक अछि जे हमरालोकनि अपन लिपिक प्राचीन रूपकें मानक रूपमे मानि ली जखनहिं हमरालोकनिक इतिहास सुरक्षित रहि पाओत जेकरा आधार पर सिद्धान्त रूपमे हमरालोकनि मिथिलाक्षरकें बंगला, असमिया आ उडियाक मातृलिपि मानैत आबि रहल छी।