मिथिलाक्षर के विकास के लिए सरकारी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता
2020-05-15
मिथिलाक्षर अथवा तिरहुता बृहत्तर सांस्कृतिक मिथिला क्षेत्र की लिपि है। इसका प्राचीन नाम हम पूर्ववैदेह लिपि के रूप में ललितविस्तर में पाते हैं। ऊष्णीषविजयधारिणी नामक ग्रन्थ की 609 ई. की एक पाण्डुलिपि में जिस सिद्ध-मातृका लिपि की सम्पूर्ण वर्णमाला दी गयी है, उस लिपि से लिच्छिवि गणराज्य से पूर्व की ओर एक न्यूनकोणीय लिपि का विकास हुआ है, जिस परिवार में वर्तमान काल में मिथिलाक्षर, बंगला, असमिया, नेबारी, उड़िया, एवं तिब्बती लिपियाँ है। इस प्रकार यह अत्यन्त प्राचीन एवं पूर्वोत्तर भारतीय बृहत्तर परिवार की लिपि है।Continue Reading