तिलक आ फलदानक आढ्यता
विगत किछु वर्षसँ मिथिलामे सेहो तिलक आ फलदानक चलनि आरम्भ भए गेल अछि। ई पहने आन-आन ठाम छल, देकर देखसी मैथिल सभ सेहो करए लगलाह अछि। एहिमे विवाहक दिन सँ किछु पहिने कन्यागत वर्तन-बासन, कपड़ा-लत्ता, फल, मेवा आदि साँठि कए अनैत छथि आ बराइत पक्ष अपन दलान पर अथवा कोनो उपयुक्त स्थान पर विशाल आयोजन करैत छथि। वर माने लड़िकाकें बीचमे बैसाओल जाइत छैक। दूनू पक्षक हजाम आ पण्डितजी रहैत छथि। गौरी-गणेशक पूजा कए कन्या माने लड़िकीक भाइ लड़िकाकें पानक पात पर दही लगाए तिलक करैत छथिन्ह। दूर्वाक्षत होइत अछि।
तकर बाद फलदानक काज आरम्भ होइत अछि। एहिमे कन्यागतक पक्षसँ लड़िकाक लेल आनल कपड़ा पहिराए, फेरसँ गौरी-गणेशक पूजा कए विवाहक लेल वरण कएल जाइत अछि आ बरतन-बासन कपड़ा-लत्ता अर्पित कएल जाइत अछि। वर ऊठि कए सभटा वस्तुक स्पर्श कए स्वीकार करबाक प्रक्रिया करैत छथि। एहीमे एकटा काँसाक बरतनमे नारिकेर नगद रुपया, सोना-चाँदी आदि जे-जे वस्तु देल जाइत छैक से लए वरक माथ ठेकाए हुनका हाथमे देल जाइत छनि।
ई सभटा प्रक्रिया हमरा केवल सुनल अछि। कतहु देखने नै छी, तैं सम्भव थीक जे तिलक आ फलदानक प्रक्रियामे उलटा-पुलटा भए गेल हो। जे करैत छथि से जानथि।
मुदा पहिने एकर सैद्धान्तिक विश्लेषण करी। ई सभटा प्रक्रिया वैदिक-पद्धतिक अर्हणा थीक, जे पद्धतिमे कन्यादानसँ ठीक पहिने देल गेल अछि। जखनि वर मण्डप पर अबैत छथि तखनि कन्यादाता हुनका पाद्य, अर्घ्य, विष्टर, मधुपर्क, वस्त्र आदिसँ स्वागत करैत छथिन्ह आ तहि मण्डपपर वर्तन-बासन, बिछाओन आदि राखल रहैत अछि जे सांकेतिक रूपसँ वर कें अर्पित करैत छथिन्ह। ई सभटा प्रक्रिया तँ जखनि पारम्परिक अछिए, तखनि अलगसँ एकर आयोजनक की प्रयोजन?
एहिमे कन्यागत अपन निकट संबन्धिक संगे 15-20 व्यक्ति बराइतक ओतए जाइत छथि तँ स्वाभाविक रूपसँ बराइत सेहो 50स कम संख्यामे किएक रहताह। भोजक आयोजन होइत अछि। खर्च सभटा बराइतक दिस सँ होइत अछि, मुदा अंततः खर्च तँ विवाहेक नाम पर भए जाइत छैक। आ जँ कहल जाए जे अन्ततः एहि सभटाक खर्च कन्यागते पर पड़ि जाइत छनि तँ सेहो अनुचित नै होएत। एहि प्रकारें ई सभटा आयोजन मात्र आढ्यता थीक। कन्यागत कें जे किछु देबाक छनि से कन्यादानसँ पूर्व अपनहिँ आँगनमे अर्हणाक रूपमे अर्पित कए देथु, जेना कि मैथिलक विवाहमे अदौसँ होइत आएल अछि।
अनदेसी परम्पराकें जे हमरालोकनि अपनाए खर्च कें बढाबा दैत छी तँ ताहि पर ध्यान देबाक चाही। ई सभ अपव्यय अन्ततः दहेज कें बढ़ाबा दैत अछि।
पहिने ई सभ किछु नै छल। ब्राह्मणेतर वर्गमे लड़िकी देखब एकटा विधि छैक जाहिमे बराइतक परिवारक किछु सम्मानित व्यक्ति जाइत छथि। ब्राह्मण समाजमे सिद्धान्त लिखलाक बाद के बेर कन्यादानेक आयोजन होइत छल। आब ई बीचमे सिंघ-नाँगड़ि घुसि गेल अछि ताहि पर ध्यान देबाक चाही।
मिथिलाक सोतिपूरामे आब हथधरी समाप्त भए गेल अछि। आब एक दिन वरक राशि-नक्षत्र लेबाक लेल कन्यागत बराइतक ओतए अबैत छथि। बराइत एकटा कागज पर वरक राशि आ नक्षत्र लाल मोसिसँ लीखि अपन गोसाउनिक तीर पर रखैत छथि आ ओएह कागज वराइत पक्षक प्रमुख व्यक्ति कन्यागत कें दैत छथिन्ह, जे लए जाए ओ अपन गोसाउनिक सीर पर रखैत छथि आ ओहि आधार पर विवाहक दिन निश्चय तकबैत छथि। ई प्रक्रिया भेलाक बादे बूझल जाइत अछि जे बराइत विवाहक स्वीकृति देलनि। एकर बाद सिद्धान्तक प्रक्रिया होइत अछि। किछु दशक पहिने धरि राशि-नक्षत्र देबासँ पूर्व हथधरी होइत छल से आब लगभग समाप्त अछि। ओ लोकनि धीरे-धीरे प्रक्रियाकें सरल बनाए रहल छथि, जाहिसँ कन्यागतकें कोनो असुविधा नहिं हो।
तें विवाहमे अनावश्यक आडम्बरसँ बचबाक चाही। से जा धरि नै बचब दहेजक रूप आर विकराल भेल जाएत। ओहि दहेजरूपी राक्षसक एक-एक टा टाङ तोड़ने जाएब, तखनि ओ समूल नाश होएत।
बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद। दूसरा भाग विवाह दिन के विवरण के साथ कब आएगा?