भूत आ प्रेतक वास्तविकता

भूत आ प्रेत ई दूनू शब्द अंधविश्वास आ डरक पर्याय बनि गेल अछि। भारते नहिं, सम्पूर्ण विश्वमे अनेक खिस्सा-पिहानी गढि कए, “हॉरर” सिनेमा बनाकए खूब व्यापार कएल गेल अछि। भारतमे सेहो बैतालपचीसीक खिस्सा खूब पसरल। ओझा-गुनी तँ ऊठि बैसलाह- “एकर देहमे भूत पैसि गेल छै, हम एकरा देहसँ भूत निकालि, ओकरा काँटीसँ ठोकि आगिमे जराए देब, ताहि लेल हमरा टाका चाही” आरो आरो मारते रास फरमाइस सुना दैत छथि।
वास्तवमे भूत आ प्रेत डेरेबाक विषय नै थीक। ई की थीक एकरा पर विचार करी।
प्रेत शब्दक अर्थ होइत अछि- मृत प्राणी। एकरा अंग्रेजीमे कहबैक- Terminated . “प्रेत” शब्दक सन्धि-विच्छेद होएत- “प्र+इत= प्रेत”। ‘प्र’ उपसर्ग थीक जेकर व्यवहार “नीक जकाँ” अर्थमे होइत अछि, आ ‘इत’ शब्दक अर्थ थीक- “जे चल गेल अछि।” ‘इण् ‘धातु सँ ‘क्त’ प्रत्यय लगला पर ‘इत’ शब्द बनतैक। एहि तरहें ‘प्रेत’ शब्दक अर्थ भेल- “जे नीक जकाँ चल गेल अछि”- माने मृत प्राणी। जे कोनो पर प्राणी मुइल अछि से थीक- प्रेत। हमरालोकनि प्रतिदिन मुइल लोक कें, अन्य मुइल प्राणीकें देखैत छी, परम्परानुसार श्रद्धा प्रकट करैत छी, ओहि प्रेतक आत्माक शान्तिक लेल प्रार्थना करैत छी। अपन हित अपेक्षितक दाह-संस्कारमे सेहो सम्मिलित होइत छी। तँ प्रेतसँ सभ तरहें परिचिते छी।

‘प्रेत’ शब्द दू अर्थ मे व्यवहार

प्रेत शब्दक व्यवहार दू अर्थ मे होइत अछि-

  1. जीवित अवस्था में पाप कएला पर दण्डक रूप में प्रेत-योनि में उत्पन्न प्राणी। एहन प्राणीक उद्धार श्राद्धकर्मसँ सम्भव नहिं अछि। लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण आदि जघन्य पापकर्मक कारणें यमराजक द्वारा ओहि व्यक्तिकें प्रेतयोनि मे जन्म लेबाक आदेश देल जाइत छनि। एकर क्षय कोनो दैवीय चमत्कारसँ अथवा भोग्यकाल पूरा कएलाक बादे सम्भव अछि। भागवत-पुराण माहात्म्यमे कहल गेल अछि-

प्रेत उवाच –

गयाश्राद्धशतेनापि मुक्तिर्मे न भविष्यति ।

उपायं अपरं कंचित् त्वं विचारय साम्प्रतम् ॥ ३३ ॥

अर्थात् सैकड़ो गया-श्राद्ध कएलासँ हमर मुक्ति सम्भव नै अछि, तें कोनो दोसर उपाय कहू।

2. सपिण्डीकरण अर्थात् अपन पूर्वजक संग सम्मेलन होएबासँ पहिलुक अवस्था। दाह-संस्कारक बाद सद्यः मृत व्यक्तिकें जनिक सपिण्डीकरण नहि भेल अछि ओ प्रेत कहबैत छथि। पितर सँ पृथक् करबाक लेल एहि शब्दक प्रयोग होइत अछि। पितर शब्द सँ पूर्वमे दिवंगत सभ पूर्वजक बोध भए जाएत तें सद्यः मृत व्यक्तिक लेल प्रेत शब्द क प्रयोग होइत अछि। एहि प्रेत शब्द कें प्रेतयोनिसँ कोनो मतलब नै छै। ई एकटा अवस्था थीक जे सभक लेल समान होइत अछि।

आर्य समाज एही दूनू प्रकार प्रेत में परम्पर घालमेल कए श्राद्धक विरोध कएलनि, जकर आधार देलनि गरुड़-पुराण कें। वास्तविकता ई अछि जे गरुड़-पुराणक प्रेतकल्पक उल्लेख 17म शतीसँ पूर्व कोनो निबन्धकार नै कएने छथि। पूर्ववर्ती निबन्धकार वायु-पुराण, ब्रह्मपुराण आदिक उद्धरण देने छथि मुदा गरुड़-पुराणसँ नहि।

गरुड़पुराणक प्रेतकल्प आधुनिक रचना थीक। एकर सारोद्धार तँ आरो नव रचना थीक, जे पहिल बेर नवनिधिरामक संपादनमे 1906मे प्रकाशित भेल जाहिमे ओ अपनहिं लिखने छथि जे ई प्रेतकल्पक सारोद्धार नहि अपितु, अनेक ठामसँ पंक्ति संकलित कए लिखल गेल अछि।

भूत शब्द अर्थ

“भूत” शब्दक अर्थ थीक- उत्पन्न आ अस्तित्वमे आएल प्राणी। एकरा अंग्रेजीमे कहबैक- existing. भू धातुक अर्थ होइत छैक- सत्तामे रहब (to exist) । “भू सत्तायाम्” धातु थीक। एहिसँ ‘क्त’ प्रत्यय लगौला पर ‘भूत’ शब्द बनैत छैक। हमरालोकनि जे किछु अहि संसारमे उत्पन्न आ जीवित प्राणी देखैत छी, ओ सभटा भूत थीक। किएक तँ ओ उत्पन्न भेल आ अस्तित्वमे अछि।

भारतीय परम्परा मानैत अछि जे जँ नीक काज करब तँ फेर पुनर्जन्म नै होएत, मोक्ष होएत आ मृत्युक बाद फेर जन्म-ग्रहण नै करए पड़त। ई आदर्श स्थिति थीक। सभ भारतीय दर्शनमे मोक्षक परिकल्पना छैक, आ तें पुनर्जन्मक परिकल्पना सेहो छैक।

तें मोटामोटी अर्थ भेल जे मृत्युक उपरान्त जनिक पुनर्जन्म कोनो रूपमे भेल अछि ओ भेल- भूत। तखनि तँ संसारमे वर्तमानमे जे किछु थीक ओ सभ भूत थीक। तें भूत भय करबाक वस्तु नै थीक।

जेकर मृत्यु हेतैक ओ मृत प्राणी थीक- प्रेत। मृत्यु शाश्वत सत्य थीक तें प्रेत सेहो शाश्वत सत्य थीक। हमर-अहाँक जे केओ व्यक्ति मृत भेल छथि ओ सभ श्राद्धपर्यन्त प्रेत रहैत छथि माने मृत प्राणीक रूपमे रहैत छथि आ भारतीय अवधारणाक अनुसार जखनि यमलोकमे अपन पूर्वजक परिवारमे मीलि जाइत छथि तखनि ओ पितर भए जाइत छथि। तें श्राद्धकालमे “अमुकप्रेतस्य” यैह वाक्य जोडल जाइत अछि।

तखनि भूत आ प्रेत सँ भय होएबाक मुख्य आधार थीक जे-

  1. जाहि प्राणीक अकाल मृत्यु भेल छैक आ ओकर अंत्येष्टि आ श्राद्ध विधि-पूर्वक नै भेल अछि ओकर अपन कर्म सेहो एहि संसारमे नीक नै रहल छैक ओहन प्राणीक पुनर्जन्म हेतैक आ ओ अपन इच्छाक पूर्तिक लेल उपद्रव करत ओ भेल अतृप्त भूत।
  2. उपर्युक्त स्थितिमे जकरा पुनर्जन्मक लेल शरीर नै भेटलैक आ ओ यमक आदेशसँ कोनो ने कोनो रूपमे दण्ड पओलक। ओ अदृश्य शक्तिक रूपमे पृथ्वी पर बौआइत अछि आ उपद्रव करैत अछि। ओ कोनो जीवक शरीरमे तत्काल प्रवेश कए ओकरा प्रभावित कए अपन काज कए लैत अछि। ओ भेल अतृप्त प्रेत।
  3. मुदा एहन महात्मा जे संसारमे सभक उपकार करैत रहलाह अछि, मृत्युक बाद यमदेवतासँ अनुरोध कए संसारक उपकार करबाक उद्देश्यसँ अदृश्य शक्तिक रूपमे पृथ्वी पर अबैत छथि आ परोपकारमे लागि जाइत छथि, आ भेलाह- अवलोकितेश्वर।

एहि प्रकारक अवधारणाक कारणें भारतीय परम्परामे बहुतो रास एहन कर्तव्य छैक जाहिसँ अतृप्ति भूत आ प्रेतकें सेहो तृप्ति प्रदान करबैत मनुष्य ओकर मोक्षक कामना करैत अछि। श्राद्धमे भूमि पर जलधारा देल जाइत छैक आ कामना कएल जाइत अछि जे एहन जीव सेहो परम गति पाबए।
दीपावलीक राति एहने अतृप्त भूत आ प्रेतकें यमलोकक रास्ता देखएबाक लेल उल्का-भ्रमणक विधान अछि। तें बुझबाक चाही जे भूत आ प्रेतसँ डेरएबाक काज नै। हमरालोकनिक पूर्वज सभटाक समाधान कहि गेल छथि।
एहि अतृप्त भूत आ प्रेतसँ बचल रहबाक आ ओकरा मोक्ष प्रदान करबाक एकमात्र उपाय छैक जे अपन आलयकें सभखन सुन्दर विचार आ कर्मसँ पवित्र राखी, जीवहत्या नै होए, कोनो आपराधिक आ ऋणात्मक कार्य नै करी। सुन्दर आ सद्विचार राखी। अपन कर्तव्य करैत धर्मक रास्ता पर चलैत प्रसन्न रही।

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