प्राचीन भारत में होली पर्व का स्वरूप, कैसे प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी होली
इसी होलाक पर्व का उल्लेख जैमिनि के मीमांसा सूत्र में भी मिलता है। वहाँ पहले अध्याय के तीसरे पाद के 15वें से 23वें सूत्र तक होलाकाधिकरण के नाम से एक खण्ड है, जिसमें होलाक पर्व को गृहस्थों के द्वारा मनाया जानेवाला एक अनुष्ठान माना गया है और इससे घर की स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि की बात कही गयी है। यहाँ भी रंग, अबीर से खेलने की कोई चर्चा नहीं है। केवल घर के सामने अग्नि जलाकर अग्नि की पूजा का विधान किया गया है।Continue Reading