Tag: Ancient Mithila
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भगवान् आदित्य की एक प्राचीन स्तुति
मित्रमिश्र संकलित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ वीरमित्रोदय के पूजा प्रकाश नामक चौथे खण्ड में भगवान् आदित्य की उपासना का प्राचीन विधान संकलित किया है। इसमें एक विशिष्ट स्तुति मिली है। आप सभी छठ पूजा के अवसर पर इसका पाठ कर लाभ उठायें- -
भैया-दूज है भाई-बहन का असली पर्व
दशपात पुरैन पर किसी पवित्र धातु या फिर मिट्टी का कोइ गहरा पात्र रखती हैं। उस पात्र में कुम्हरे का फूल, पान, सुपाड़ी, हर्रे, मखाना और साथ में चांदी का सिक्का रखती हैं। पीठार और सिंदूर की डिब्बी, जलपात्र, धूप-दीप भी रखा जाता है। भाई उस पीढे पर अपनी अंजलि को पात्र के उपर करके ... -
इस बार 2022ई. में जिउतिया कब है?
इस प्रकार, यह सिद्ध है कि जीवित्पुत्रिका व्रत की मूल परम्परा मैथिलों की है। मैथिलेतर यदि इस व्रत को करते हैं तो उन्हें मिथिला की परम्परा माननी चाहिए। लेकिन केवल भिन्नता दिखाने के लिए इस प्रकार की अव्यवस्था फैलने से हमारे व्रतों-पर्वों की परम्परा की हानि होगी, यह बात हम सबको समझनी चाहिए। सिद्धान्त रूप ... -
मिथिला आ ओकर अस्मिताक निर्धारक तत्त्व
भाषा, लिपि, चौहद्दीक प्राचीन उल्लेख एहि तीनू कारकक संग आरो बहुत रास एहन तत्त्व सभ विवचनीय अछि जे मिथिलाक अस्मिताक निर्धारक तत्त्व थीक, जेकर विवेचन एतए अपेक्षित अछि। -
शतरुद्रिय-प्रयोग- मैथिल साम्प्रदायिक रुद्राभिषेक-विधि
मिथिलामे शतरुद्रिय मन्त्रसँ रुद्राभिषेकक प्रचलन रहल अछि। एहि मन्त्रसँ श्रद्धालुलोकनि अपन घर पर बिना कोनो ताम-झाम कएने सुविधासँ रुद्राभिषेक कए सकैत सकैत छथि।
सीतामढ़ीक शिवहर स्टेटक राजा श्रीराजदेवनन्दन सिंह बहादुर मिथिलाक श्रेष्ठ पण्डितसभ केँ अपना ओतए राखि शाक्तप्रमोद नामक ग्रन्थक सम्पादन करओलनि। ई ग्रन्थ मिथिलामे बड़ा प्रचलित भेल। एतए एही ...
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जब मिस उर्दू ने दरभंगा के मुंसिफ कोर्ट में श्रीमती हिन्दी के विरुद्ध मोकदमा दायर किया।
दरभंगा का मुंसिफ कोर्ट। अंगरेजों के जमाने में भारतीय जजों के कोर्ट को मुंसिफ कहा जाता था। 1873-74 का समय था। मुंसिफ कोर्ट में एक मुसलमान जज बैठे हुए थे। इसी समय मिस उर्दू रोती-बिलखती छाती पीटती हुई आयी। उसने अपील की- ‘हुजूर, श्रीमती हिन्दी मुझे बिहार से निकालना चाह रही है। मेरी फरियाद सुन ... -
मिथिला की तीर्थयात्रा सम्बन्धी विवरण
‘रुद्रयामलसारोद्धार’ नामक एक ग्रन्थ में मिथिला की तीर्थयात्रा का वर्णन हुआ है। यह अंश अधूरा है तथा इसके आंतरिक विवेचन से यह 13वीं शती से 18 शती के बीच मिथिला में किसी ने लिखकर इसे रुद्रयामलसोरद्धार के नाम से प्रचारित किया है। इसमें कुछ स्थलों के प्राचीन नाम हैं, जिन्हें आधुनिक स्थानों से मिलाने पर ... -
‘अंतिका’क नव अंकक संपादकीय- मिथिलामक टिटिम्हा- अगिलेसुआक लुत्ती
मैथिलीक जाहि स्वरूपक ओ विरोध करैत छथि ओही स्वरूपक व्यवहार जखनि सम्पादक स्वयं करैत छथि तखनि ऊपरमे लिखल सभटा बात केवल आगि लगएबाक साधन थीक आ एकरे कहैत छै- अगिलेसुआक कथा। -
मिथिला के ऐतिहासिक व्यक्ति धूर्तराज गोनू झा के नाम को बिगाड़ने का दुष्प्रयास
इतिहासकारों का मानना है कि वे कर्महे मूल के बीजी पुरुष वंशधर के तीन पुत्रों में एक थे। पंजी में उनके नाम के साथ धूर्तराज शब्द लगा हुआ है- करमहे सोनकरियाम मूल मे बीजी मम बंशधर, ऐजन सुतो मम हरिब्रह्म, म.म. हरिकेश, म.म. धूर्तराज गोनू। -
प्राचीन भारत में होली पर्व का स्वरूप, कैसे प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी होली
इसी होलाक पर्व का उल्लेख जैमिनि के मीमांसा सूत्र में भी मिलता है। वहाँ पहले अध्याय के तीसरे पाद के 15वें से 23वें सूत्र तक होलाकाधिकरण के नाम से एक खण्ड है, जिसमें होलाक पर्व को गृहस्थों के द्वारा मनाया जानेवाला एक अनुष्ठान माना गया है और इससे घर की स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि ...