मिथिला में कृष्णजन्माष्टमी के दिन दुर्गा-पूजन की लुप्त होती परम्परा
मिथिला में कृष्णाष्टमी के साथ दुर्गापूजा मनाने की भी परम्परा रही है। शुम्भ और निशुम्भ का संहार करनेवाली देवी इसी रात्रि यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी।Continue Reading
मिथिला आ मैथिलीक लेल सतत प्रयासरत
मिथिला में कृष्णाष्टमी के साथ दुर्गापूजा मनाने की भी परम्परा रही है। शुम्भ और निशुम्भ का संहार करनेवाली देवी इसी रात्रि यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी।Continue Reading
मिथिला के डाक पर्वों का संकेत करते कहते हैं- सुत्ता उट्ठा पाँजर मोड़ा, ताही बीचै जनमल छोड़ा। सुत्ता यानी भगवान् के सोने का दिन हरिशयन एकादशी, उट्ठा यानी उठने का दिन देवोत्थान एकादशी, पाँजरमोड़ा- करवट बदलने का दिन पार्श्वपरिवर्तिनी एकादशी और इसी के बीच छोरा यानी बालक श्रीकृष्ण का जन्म होता है। यह मंगलमय दिन भाद्र कृष्ण अष्टमी- श्रीकृष्णाष्टमी आज उपस्थित है।Continue Reading
विभक्ति एवं वचन का विचार किये बिना सीधे इन शब्दों का रूप कण्ठस्थ कर लेना सबसे उपयुक्त है। ध्यातव्य है कि प्रारम्भिक पाठों में याद करने से पूर्व अन्य किसी भी बात पर ध्यान देने से बाधा उत्पन्न होती है। ये दश नपुंसक शब्द परम्परा से नायक माने गये हैं। संस्कृत शिक्षण-पद्धति में प्राचीन काल से यह श्लोक प्रचलित है:Continue Reading
हम संस्कृत भाषा सीखने के लिए पाठमाला दे रहे हैं। इसके अन्तर्गत सबसे पहले शब्दरूपों को कंठस्थ करने का पाठ आरम्भ किया है। पिछले पोस्ट में 10 पुल्लिंग शब्दों के रूपContinue Reading
अनेक पाठकों के अनुरोध पर मैंने ‘धर्मायण’ के स्थायी-स्तम्भ के अन्तर्गत संस्कृत भाषा सीखने के लिए कुछ पाठों का क्रमशः प्रकाशन अंक संख्या 86 से किया था। उद्देश्य यह था कि ऐसे व्यक्ति जो हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के अच्छे जानकार हैं, संस्कृत सीखने की अभिरुचि रखते हैं, जिससे वे पुराणों तथा अन्य संस्कृत-ग्रन्थों की भाषा को समझ सके, विना अनुवाद के भी मूल पढ़कर उनका अर्थ लगा सकें।Continue Reading
मैथिलीक जाहि स्वरूपक ओ विरोध करैत छथि ओही स्वरूपक व्यवहार जखनि सम्पादक स्वयं करैत छथि तखनि ऊपरमे लिखल सभटा बात केवल आगि लगएबाक साधन थीक आ एकरे कहैत छै- अगिलेसुआक कथा।Continue Reading
जल हाथ में लेकर – ॐ तत्सत् ॐ तत्सत् ॐ तत्सत्।
पूर्वोत्तर कोण की ओर मुँह कर आचमन कर शिखा बाँधकर फिर दो बार आचमन कर वाम भाग में कुश रखें और दाहिने हाथ में तेकुशा लेकर –
अघमर्षणसूक्तस्याघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृतोदेवताश्वमेधावभृथे विनियोगः।।
ॐ ऋतञ्च सत्यञ्चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत।
ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः॥१॥
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हम इतिहास को उलट कर देखें तो पता चलेगा कि यूरोपीयन प्रभाव के कारण सबसे पहले तथा सबसे अधिक प्रभावित हमारे पारम्परिक उत्पादक वर्ग हुए,Continue Reading
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत की परम्परा में मन्दिरों में पूजा करने के विशेष नियम हैं, विशेष मन्त्र हैं। मन्त्रों की अपनी-अपनी अलग-अलग परम्परा है। दक्षिण भारत के वैष्णव मन्दिरों में वैखानस आगम से पूजा होती है। Continue Reading
इतिहासकारों का मानना है कि वे कर्महे मूल के बीजी पुरुष वंशधर के तीन पुत्रों में एक थे। पंजी में उनके नाम के साथ धूर्तराज शब्द लगा हुआ है- करमहे सोनकरियाम मूल मे बीजी मम बंशधर, ऐजन सुतो मम हरिब्रह्म, म.म. हरिकेश, म.म. धूर्तराज गोनू। Continue Reading
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