वाल्मीकि रामायण का सबसे पुराना प्रकाशन
विलियम कैरी एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के सदस्य थे। वाल्मीकि रामायण का प्रकाशन गद्यानुवाद के साथ किया, जो 3 खण्डों में सेरामपुर प्रेस से 1806-07 में प्रकाशित हुआ।Continue Reading
मिथिला आ मैथिलीक लेल सतत प्रयासरत
विलियम कैरी एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के सदस्य थे। वाल्मीकि रामायण का प्रकाशन गद्यानुवाद के साथ किया, जो 3 खण्डों में सेरामपुर प्रेस से 1806-07 में प्रकाशित हुआ।Continue Reading
1846 ई. में विलियम वॉन श्लेगल ने वाल्मीकि रामायण के दो काण्डों बालकाण्ड एवं अयोध्याकाण्ड का सम्पादन लैटिन अनुवाद के साथ किया।Continue Reading
पश्चिमोत्तर पाठ के मूल यहाँ संकलित हैं। इस संस्करण का भी हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ है। काश्मीर का मुख्य रूप से पाठ होने के कारण यह अपनी विशेषता तथा प्राचीनता लिये हुए है।Continue Reading
पूर्वोत्तर का पाठ नेपाल, मिथिला, और बंगाल में प्रचलित हैं। इन तीनों का पाठ एक है। जहाँ कहीं भी थोड़ा बहुत पाठान्तर दिखायी देता है, उसमें भी अर्थ का अन्तर नहीं है। यह सबसे महत्त्वपूर्ण पाठ है।Continue Reading
गमला में पौधा/ठिगना सा/
शहरी बाबू सा / एक ड्राइंग रूम में।
दीवारों से घिरा हुआ /
फौलादी दरबाजे पर दरबान खड़ा / संगीन लिए।
आइ मिथिलाक्षर बहुत गोटे सीखि रहल छथि। हुनका पढबाक लेल समग्री चाही, नहीं तँ सिखल सभटा बिसरि जएताह। एहि स्थिति कें देखैत किछु सामग्री मिथिलाक्षरमे प्रकाशित करबाक निर्णय लेल गेल अछि। ओही शृंखलाक ई पहिल प्रकाशन थीक।Continue Reading
काले पत्थर की इस मूर्ति के पादपीठ पर एक पंक्ति का एक अभिलेख है। इस अभिलेख को महावीर मन्दिर पत्रिका “धर्मायण” के सम्पादक तथा लिपि एवं पाण्डुलिपि के ज्ञाता पं. भवनाथ झा ने पढा।Continue Reading
मिथिलाक्षर अथवा तिरहुता बृहत्तर सांस्कृतिक मिथिला क्षेत्र की लिपि है। इसका प्राचीन नाम हम पूर्ववैदेह लिपि के रूप में ललितविस्तर में पाते हैं। ऊष्णीषविजयधारिणी नामक ग्रन्थ की 609 ई. की एक पाण्डुलिपि में जिस सिद्ध-मातृका लिपि की सम्पूर्ण वर्णमाला दी गयी है, उस लिपि से लिच्छिवि गणराज्य से पूर्व की ओर एक न्यूनकोणीय लिपि का विकास हुआ है, जिस परिवार में वर्तमान काल में मिथिलाक्षर, बंगला, असमिया, नेबारी, उड़िया, एवं तिब्बती लिपियाँ है। इस प्रकार यह अत्यन्त प्राचीन एवं पूर्वोत्तर भारतीय बृहत्तर परिवार की लिपि है।Continue Reading
स्व. डा. आमोद झा मिथिलाक कुशल पाण्डुलिपि-विज्ञानी रहथि। ई अनेक संस्कृत ग्रन्थ कें मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपिसँ लिप्यन्तरण कए ओकर सम्पादन कएने रहथि। कमे समयमे हिनक कएल काज सभ दिन महत्त्वपूर्ण रहल। दुर्भाग्य जे अल्प अवस्थामे 1993 ई. मे हिनक देहान्त भेल आ मिथिलाक्षरक एकटा पाण्डुलिपि-शास्त्री सँ हमरालोकनि वंचित भए गेलहुँ। हिनक असमय देहान्त सँ एकटा अपूरणीय क्षति भेल छैक।Continue Reading
मिथिला के आधुनिक विद्वानों में अन्यतम डा. शशिनाथ झा, एक साथ मिथिला के इतिहास, पाण्डुलिपिशास्त्र, संस्कृत व्याकरण, साहित्य, धर्मशास्त्र आदि के विद्वान् हैं। इन्होंने सौ से अधिक ग्रन्थों का सम्पादन तथा लेखन किया है।Continue Reading