parva nirnay

दरभंगा में 1932 ई. में तत्कालीन स्थापित पण्डितों का योगदान मिथिला की धर्मशास्त्र-परम्परा में अविस्मरणीय है। उस समय के प्रख्यात ज्योतिषी पं. कुशेश्वर शर्मा, जिन्होंने 1921 ई. से 1931 ई. तक मिथिलादेशीय पंचांग का भी निर्माण किया था, पर्वों के निर्णय के लिए उस समय के विख्यात धर्मशास्त्रियों का आह्वान किया और एक एक पर्व पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर प्रमाण के साथ अपना मन्तव्य देने का अनुरोध किया। इसके अन्तर्गत कुल 83 पर्वो पर निवन्ध आये, जिनमें कुछ विषयों पर दो दो विद्वानों ने पृथक् पृथक् अपना निर्णय लिखा।Continue Reading

मगध में कब से होती है सूर्य पूजा

मित्रमिश्र संकलित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ वीरमित्रोदय के पूजा प्रकाश नामक चौथे खण्ड में भगवान् आदित्य की उपासना का प्राचीन विधान संकलित किया है। इसमें एक विशिष्ट स्तुति मिली है। आप सभी छठ पूजा के अवसर पर इसका पाठ कर लाभ उठायें-Continue Reading

Bharaditiya mithila men

दशपात पुरैन पर किसी पवित्र धातु या फिर मिट्टी का कोइ गहरा पात्र रखती हैं। उस पात्र में कुम्हरे का फूल, पान, सुपाड़ी, हर्रे, मखाना और साथ में चांदी का सिक्का रखती हैं। पीठार और सिंदूर की डिब्बी, जलपात्र, धूप-दीप भी रखा जाता है। भाई उस पीढे पर अपनी अंजलि को पात्र के उपर करके बैठता है। बहन उसे सिंदूर-पिठार से टीका लगाती हैं। अंजुरी के दोनों तलहथी में भी सिंदूर पिठार लगाती हैं, फिर जितना कुछ उस पात्र में सामग्री रखा रहता है, सब कुछ उठाकर पहले उसके अंजुरी में भर देती हैं फिर जल के द्वारा हाथ से उसे उसी पात्र में गिरा देती हैं। यह क्रम तीन बार किया जाता है। इस विधान को करते हुए बहने अपने भाई के आयुवृद्धि के लिए या तो संस्कृत का या फिर लोकमंत्र को पढते हुए निभाती हैं–Continue Reading

jiutiya vrat 2022

इस प्रकार, यह सिद्ध है कि जीवित्पुत्रिका व्रत की मूल परम्परा मैथिलों की है। मैथिलेतर यदि इस व्रत को करते हैं तो उन्हें मिथिला की परम्परा माननी चाहिए। लेकिन केवल भिन्नता दिखाने के लिए इस प्रकार की अव्यवस्था फैलने से हमारे व्रतों-पर्वों की परम्परा की हानि होगी, यह बात हम सबको समझनी चाहिए। सिद्धान्त रूप में हमें चाहिए कि जहाँ का व्रत हम करते हैं वहाँ की जो अपनी मूल परम्परा है, उसका अनुसरण करें। अतः सभी श्रद्धालुओं को दिनांक 17 को जीमूतवाहन व्रत करना चाहिए।Continue Reading

mithila map

भाषा, लिपि, चौहद्दीक प्राचीन उल्लेख एहि तीनू कारकक संग आरो बहुत रास एहन तत्त्व सभ विवचनीय अछि जे मिथिलाक अस्मिताक निर्धारक तत्त्व थीक, जेकर विवेचन एतए अपेक्षित अछि।Continue Reading

Parthiva Shiva

मिथिलामे शतरुद्रिय मन्त्रसँ रुद्राभिषेकक प्रचलन रहल अछि। एहि मन्त्रसँ श्रद्धालुलोकनि अपन घर पर बिना कोनो ताम-झाम कएने सुविधासँ रुद्राभिषेक कए सकैत सकैत छथि।

सीतामढ़ीक शिवहर स्टेटक राजा श्रीराजदेवनन्दन सिंह बहादुर मिथिलाक श्रेष्ठ पण्डितसभ केँ अपना ओतए राखि शाक्तप्रमोद नामक ग्रन्थक सम्पादन करओलनि। ई ग्रन्थ मिथिलामे बड़ा प्रचलित भेल। एतए एही ग्रन्थसँ उद्धृत शतरुद्रिय-प्रयोग-पद्धति देल जा रहल अछि।Continue Reading

Hindi-urdu controversy in Darbhanga

दरभंगा का मुंसिफ कोर्ट। अंगरेजों के जमाने में भारतीय जजों के कोर्ट को मुंसिफ कहा जाता था। 1873-74 का समय था। मुंसिफ कोर्ट में एक मुसलमान जज बैठे हुए थे। इसी समय मिस उर्दू रोती-बिलखती छाती पीटती हुई आयी। उसने अपील की- ‘हुजूर, श्रीमती हिन्दी मुझे बिहार से निकालना चाह रही है। मेरी फरियाद सुन ली जाये।ʼContinue Reading

Mithila Yantra

‘रुद्रयामलसारोद्धार’ नामक एक ग्रन्थ में मिथिला की तीर्थयात्रा का वर्णन हुआ है। यह अंश अधूरा है तथा इसके आंतरिक विवेचन से यह 13वीं शती से 18 शती के बीच मिथिला में किसी ने लिखकर इसे रुद्रयामलसोरद्धार के नाम से प्रचारित किया है। इसमें कुछ स्थलों के प्राचीन नाम हैं, जिन्हें आधुनिक स्थानों से मिलाने पर सभी विवरण वास्तविक प्रतीत होते हैं। दिशानिर्देश के साथ मन्दिरों, तीर्य़ों तथा गाँवों का विवरण यहाँ मिलता है।Continue Reading

टुकड़े-टुकडे गैंग

मैथिलीक जाहि स्वरूपक ओ विरोध करैत छथि ओही स्वरूपक व्यवहार जखनि सम्पादक स्वयं करैत छथि तखनि ऊपरमे लिखल सभटा बात केवल आगि लगएबाक साधन थीक आ एकरे कहैत छै- अगिलेसुआक कथा।Continue Reading

गोनू झा

इतिहासकारों का मानना है कि वे कर्महे मूल के बीजी पुरुष वंशधर के तीन पुत्रों में एक थे। पंजी में उनके नाम के साथ धूर्तराज शब्द लगा हुआ है- करमहे सोनकरियाम मूल मे बीजी मम बंशधर, ऐजन सुतो मम हरिब्रह्म, म.म. हरिकेश, म.म. धूर्तराज गोनू। Continue Reading