डा. बिनादोनन्द झा 'विश्वबन्धु'

हिनक रचना ‘जीवन एक प्रयोगशाला’ हिनक आत्मकथा थीक जे घोर अभावक बीचसँ उठि सफलताक शिखर पर पहुँचबाक प्रेरणा दैत अछि। लेखक मिथिलामे ध्वस्त होइत उद्योग-धंधाक असहाय दर्शक छथि। Continue Reading

Mithila Yantra

‘रुद्रयामलसारोद्धार’ नामक एक ग्रन्थ में मिथिला की तीर्थयात्रा का वर्णन हुआ है। यह अंश अधूरा है तथा इसके आंतरिक विवेचन से यह 13वीं शती से 18 शती के बीच मिथिला में किसी ने लिखकर इसे रुद्रयामलसोरद्धार के नाम से प्रचारित किया है। इसमें कुछ स्थलों के प्राचीन नाम हैं, जिन्हें आधुनिक स्थानों से मिलाने पर सभी विवरण वास्तविक प्रतीत होते हैं। दिशानिर्देश के साथ मन्दिरों, तीर्य़ों तथा गाँवों का विवरण यहाँ मिलता है।Continue Reading

mithila map

एतए स्पष्ट अछि जे एकटा मैथिलक दिससँ मैथिलीमे अनूदित करबाक लेल प्रस्ताव देल गेल मुदा जें कि एहि ठामक लोक हिन्दी सेहो बुझैत छल तें सरकारी आदेशसँ केवल हिन्दी भाषामे अनुवाद भेल।Continue Reading

Arts College Hostel

लेकिन दरभंगा के महाराज रमेश्वर सिंह का यह अनुदान इस शर्त पर दिये गया थी कि बिहार के सनातनी छात्रों को इसमें प्रवेश में प्राथमिकता दी जायेगी। यहाँ ध्यातव्य है कि उन्होंने नाम जोड़ने की कोई शर्त नहीं रखी थी।Continue Reading

घुरि आउ कमला आवरण

परेत फेर कहए लागल- “गाममे फुलिया आ हमर बात सभ केओ बूझि गेल रहए। ओकर बहिन सेहो सुनलक। गप्प चललै। फुलिया सँ हमर बियाह भए गेल। ओही साल कमला माइ सेहो किरपा कएलखिन। एही गाम देने बहए लगलीह। खूब धानो उपजै। माछ मखान भेट, सिंघार, करहर, सारूख ई सभ तँ अलेल रहै।…Continue Reading

टुकड़े-टुकडे गैंग

मैथिलीक जाहि स्वरूपक ओ विरोध करैत छथि ओही स्वरूपक व्यवहार जखनि सम्पादक स्वयं करैत छथि तखनि ऊपरमे लिखल सभटा बात केवल आगि लगएबाक साधन थीक आ एकरे कहैत छै- अगिलेसुआक कथा।Continue Reading

कुलधर्म

हम इतिहास को उलट कर देखें तो पता चलेगा कि यूरोपीयन प्रभाव के कारण सबसे पहले तथा सबसे अधिक प्रभावित हमारे पारम्परिक उत्पादक वर्ग हुए,Continue Reading

गोनू झा

इतिहासकारों का मानना है कि वे कर्महे मूल के बीजी पुरुष वंशधर के तीन पुत्रों में एक थे। पंजी में उनके नाम के साथ धूर्तराज शब्द लगा हुआ है- करमहे सोनकरियाम मूल मे बीजी मम बंशधर, ऐजन सुतो मम हरिब्रह्म, म.म. हरिकेश, म.म. धूर्तराज गोनू। Continue Reading

विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

विद्यापतिकृत कीर्तिपताका का एकमात्र हस्तलेख मिथिलाक्षर में लिखित तालपत्र नेपाल राजकीय हस्तलेखागार, काठमाण्डू में है। इसमें ग्रन्थ पूर्ण नहीं है। परीक्षण करने पर इस हस्तलेख में छोटे-छोटे तीन स्वतन्त्र ग्रन्थ सिद्ध हुए हैं-Continue Reading

जनक-याज्ञवल्क्य की धरती मिथिला एक ओर यजुर्वेद एवं शतपथ-ब्राह्मण की वैदिक परम्परा की भूमि रही है तो दूसरी ओर आगम-परम्परा में शक्ति-पूजन के लिए विख्यात रही है।Continue Reading