dhani kalhi jebai panjab

रूपनक मोन छौ-पाँच करए लगलनि। नाँओ खूजि जेतै त गाममे उकबा ऊठि जेते। आ तैमे मारल जेतै बेचारा बहुरी झा। तेहन लोकक बेटी पुतोहु उखाड़ने रहनि जे ओकरा पर कैफा करथिन त उनटले डेंगा देतनि। ओकरा कोन! नढड़ा हेलल अछि। सभ चिन्है छै ओकरा दरोगासँ एम० पी० धरि। भोटक दिन ओहिना थोड़बे धड़फड़न देने रहै-ए बूथ पर। ते नाँओ कहै सँ नीक जे बेचारा अनभुआरेमे दैवेक डाङ बूझि कʼ छातीमे मुक्का मारि लेथु। ते रूपन बुझियो कʼ झूठ बाजि गेला जे हम नै चिनहलिए। जावत लग जाइ तावत ओ निपत्ता भʼ गेल।Continue Reading

हम भारत माता की संतान हैं। हम सिन्धु नदी के किनारे से चलकर पूरे भारत में फैले हुए हैं, तो हम सिन्धु से फैले सिन्दु हैं, हिन्दु हैं। हमारे हिन्दुत्व की व्याख्या हमारी ही धरती और पानी से हो सकती है। आरम्भ से लेकर आजतक हमें एक-दूसरे से जोड़कर रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत प्रयास किया है। जबतक हम उन सभी प्रयासों को एक जगह तलहत्थी पर रखे आँवले की तरह नहीं देख पायेंगे हम हिन्दुत्व को पहचानने में भयंकर भूलकर बैंठेंगे।Continue Reading

article by Radha kishore Jha

वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है? तैत्तिरीय श्रुति हमें आदेश एवं उपदेश देती है कि धर्म पथ पर चलो- धर्मं चर। वसिष्ठ धर्मसूत्र भी कहता है कि धर्मं चर माधर्मम्। धर्म पथ पर चल, अधर्म पर नहीं। अतः हमें जानना चाहिए कि वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है?Continue Reading

मैथिली भाषा

एखनि हम मैथिलीक विभिन्न विद्वान् आ सामान्य जन दुहूक लिखल लगभग 40 टा आलेख कें एक पुस्तक में संकलित कए ओकर सम्पादन कए रहल छी। एहि क्रममे हमरा परसर्गक रूपमे ‘के’ एवं ‘से’क प्रयोग मे एतेक विविधता आ भ्रान्ति भेटल जे ओहि पर लिखब आवश्यक बुझाइत अछि। ई दुहू हिन्दीकContinue Reading

दुर्गापूजा में पट लगाना

पटना में कई जगहों पर स्थायी दुर्गा-मन्दिर हैं, जहाँ सालों भर माँ की पूजा होती है। इन मंदिरों में स्थायी स्थापित मूर्तियाँ हैं औऱ विधान के साथ प्रतिदिन पूजा होती है। भक्तगण प्रत्येक दिन दर्शन का लाभ लेते हैं। सन्ध्याकाल प्रतिदिन आरती होती है, जिस समय काफी भीड़ रहती है।Continue Reading

वाल्मीकि-रामायण सबसे पुरानी प्रति

“संवत् 1076 अर्थात् 1019 ई. में आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी तिथि को महाराजाधिराज, पुण्यावलोक, चन्द्रवंशी, गरुडध्वज उपाधिधारी राजा गांगेयदेव के द्वारा शासित तिरहुत में कल्याणविजय राज्य में, नेपाल देश के पुस्तकालयाध्यक्ष श्रीआनन्द के लिए गाँव के एक टोला में रहते हुए पण्डित कायस्थ श्री श्रीकर के पुत्र श्रीगोपति ने इसे लिखा।”
यह तालपत्र में लिखित 800 पत्रों का ग्रन्थ नेवारी लिपि में है, जिसमें सातों काण्ड हैं। यह काठमाण्डू के वीर पुस्तकालय (राजकीय अभिलेखागार) में है, जिसकी फोटोप्रति बड़ौदा में ग्रन्थ सं–14156 है। इसके किष्किन्धाकाण्ड के अन्तमें एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुष्पिका (समाप्तिसूचक लेखीय वाक्य) है।Continue Reading

1815ई. में वह अंगरेज दरभंगा पहुँचा। उसने राजा महाराजा छत्रसिंह के साथ बातचीत में कहा कि आपके राज्य में खूब “कोंआ” है, मुझे चाहिए।Continue Reading

संस्कृत पाठमाला- भवनाथ झा

विभक्तियाँ तो सात हैं किन्तु कारक छह ही हैं। षष्ठी विभक्ति अतिरिक्त है। चूँकि सम्बन्ध में शब्दों का क्रिया के साथ सम्बन्ध नहीं रहता है, इसलिए सम्बन्ध को कारक नहीं माना गया है।Continue Reading

यह अंक विषयों की विविधता से भरा हुआ है। इसमें भारत की शक्ति-उपासना, कृष्ण-उपासना, गणेश-उपासना, पितृ-उपासना, लक्ष्मी-उपासना तथा लोकदेवताओं की उपासना से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री संकलित किये गये हैं। साथ ही, विशिष्ट आलेख के रूप में धर्म के स्रोतों पर विवेचन किया गया है।Continue Reading

Akbar's view on Hinduism

से व्यक्ति ने तुजुक ए जहाँगीरी का अनुवाद फारसी के स्रोत के आधार पर किया तथा उसे Memoirs Of The Emperor Jahangueir के नाम से 1829 ई. प्रकाशित कराया। इसका प्रकाशन ओरियंटल ट्रांसलेशन कमिटी के द्वारा कराया गया। डेविड प्राइस ने जिस संस्करण से अनुवाद किया था, वह 1040 हिजरी की लिखी हुई थी। मिस्टर मार्ले ने इसी आधार पर प्राइस वाली प्रति को प्रामाणिक माना है। उऩका मन्तव्य है कि इतनी शीघ्र प्रतिलिपि करते हुए कोई व्यक्ति अपने मन से प्रक्षिप्त अंश को जोड़कर लोगों को धोखा नहीं दे सकता है। जहाँगीरनामा के हिंन्दी अनुवादक व्रजरत्नदास ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित जहाँगीर का आत्मचरित पुस्तक की भूमिका पृष्ठ संख्या 7 पर इन तथ्यों का स्पष्टीकरण दिया है।Continue Reading