भोजपुरी-संस्कृति फूहड़ नहीं, सनातन की कोमलता और मानवीयता से भरी-पूरी है- ‘धर्मायण’ पत्रिका, महावीर मन्दिर, पटना प्रकाशन
भोजपुरी-संस्कृति फूहड़ नहीं, सनातन की कोमलता और मानवीयता से भरी-पूरी है- ‘धर्मायण’ पत्रिका, महावीर मन्दिर, पटना प्रकाशन
आज भले हम भोजपुरी गीतों में अश्लीलता और फूहड़पन पाते हैं, पर यहाँ की मूल धारा कहीं से भी फूहड़ नहीं। सनातन संस्कृति की वहीं धारा यहाँ भी आज विभिन्न पर्वों और त्योहारों के अवसर पर हम देखते हैं। भैया-दूज की ही परम्परा लें तो हमें भाव-विह्वल कर देने वाली संस्कृति यहाँ देखने को मिलती है।Continue Reading
भैया-दूज है भाई-बहन का असली पर्व
दशपात पुरैन पर किसी पवित्र धातु या फिर मिट्टी का कोइ गहरा पात्र रखती हैं। उस पात्र में कुम्हरे का फूल, पान, सुपाड़ी, हर्रे, मखाना और साथ में चांदी का सिक्का रखती हैं। पीठार और सिंदूर की डिब्बी, जलपात्र, धूप-दीप भी रखा जाता है। भाई उस पीढे पर अपनी अंजलि को पात्र के उपर करके बैठता है। बहन उसे सिंदूर-पिठार से टीका लगाती हैं। अंजुरी के दोनों तलहथी में भी सिंदूर पिठार लगाती हैं, फिर जितना कुछ उस पात्र में सामग्री रखा रहता है, सब कुछ उठाकर पहले उसके अंजुरी में भर देती हैं फिर जल के द्वारा हाथ से उसे उसी पात्र में गिरा देती हैं। यह क्रम तीन बार किया जाता है। इस विधान को करते हुए बहने अपने भाई के आयुवृद्धि के लिए या तो संस्कृत का या फिर लोकमंत्र को पढते हुए निभाती हैं–Continue Reading
मगध में सूर्य-पूजा विशेष रूप से क्यों?
शाकद्वीप से जो 18 ब्राह्मण लाये गये थे उनके नाम साम्बपुराण में मिलते हैं- मिहिरांशु, शुभांशु, सुधर्मा, सुमति, वसु, श्रुतकीर्ति, श्रुतायु, भरद्वाज, पराशर, कौण्डिन्य, कश्यप, गर्ग, भृगु, भव्यमति, नल, सूर्यदत्त, अर्कदत्त, और कौशिक।Continue Reading
मैथिल कविकोकिल विद्यापति दुर्गाक स्तुति कोन मन्त्रसँ करैत रहथि?
मैथिल कविकोकिल विद्यापतिक लिखल ग्रन्थ ‘दुर्गाभक्तितरंगिणी’ सभ प्रकारेँ प्रामाणिक अछि आ हमरालोकनि जे मैथिल छी तनिका लेल विशेष रूपसँ आदरणीय अछि।Continue Reading
‘पितर’ के अर्थ में ‘अग्निष्वात्ताः’ शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?
आर्य समाज की मान्यता में दाह संस्कार के बाद श्राद्ध होता ही नहीं है। दयानंद की मान्यता है कि दाह-संस्कार से पूर्व चिता पर वैदिक मंत्रों से हवन कीजिए औऱ फिर आग में लाश को जला दीजिए फिर आपको जिन्दगी भर कुछ करने की जरूरत नहीं है। आर्य समाज का सिद्धान्त है कि जीवित अवस्था में ही माता-पिता एवं समाज के विद्वान् व्यक्ति पितर कहलाते हैं, उऩकी श्रद्धापूर्वक सेवा करना ही श्राद्ध है।Continue Reading
शादी का मुहूर्त- दग्धतिथि में न करें शादी, बड़ा दोष होता है।
दग्ध यानी जली हुई। प्रत्येक महीने दो तिथियाँ होतीं हैं, जिन्हें दग्ध तिथि कहते हैं। इसकी गणना आप स्वयं कर सकते हैं। यात्रा, विवाह, व्यापार आरम्भ करना तथा कर्ज का लेन-देन इन तीनों में दग्धतिथि से बचना चाहिए। दग्धतिथि का फल इस दग्ध तिथि में शुभकार्य नहीं करने का निर्देशContinue Reading
मैथिल दुर्गादत्त ओ हुनक छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थ ‘वृत्तरत्नावली’
एतए हमरा एहि ग्रन्थक एक पाण्डुलिपि उपलब्ध अछि जे संवत् 1866मे भराम गाम मे रामवत्स नामक व्यक्ति द्वारा लिपिबद्ध कएल छल। तदनुसार एकर लेखनकाल 1810ई. थीक। एकर पुष्पिकामे एहि प्रकारें अछि-
इतिश्रीमैथिलदुर्गादत्तविरचितायां वृत्तमुक्तावल्यां वृत्तबोधको नाम तृतीयः प्रयासः। शुभमस्तु संवत्सरः 1866 मिथिलादेशे भरामग्रामे लिखितोऽयं ग्रन्थो रामवत्सेन। Continue Reading
मैथिली आ अंगिका पर लालकृष्ण आडवानी की बाजल रहथि
मैथिली आ अंगिका पर लालकृष्ण आडवानीक देल गेल लिखित उत्तरContinue Reading
इस बार 2023ई. में जिउतिया कब है?
इस प्रकार, यह सिद्ध है कि जीवित्पुत्रिका व्रत की मूल परम्परा मैथिलों की है। मैथिलेतर यदि इस व्रत को करते हैं तो उन्हें मिथिला की परम्परा माननी चाहिए। लेकिन केवल भिन्नता दिखाने के लिए इस प्रकार की अव्यवस्था फैलने से हमारे व्रतों-पर्वों की परम्परा की हानि होगी, यह बात हम सबको समझनी चाहिए। सिद्धान्त रूप में हमें चाहिए कि जहाँ का व्रत हम करते हैं वहाँ की जो अपनी मूल परम्परा है, उसका अनुसरण करें। अतः सभी श्रद्धालुओं को दिनांक 17 को जीमूतवाहन व्रत करना चाहिए।Continue Reading
उपासनाक भाषा- मातृभाषा
हमरालोकनि मिथिलाक छी। जतेक व्रतकथा अछि, पूजा-पद्धति अछि, पूजापद्धतिमे प्रयुक्त पौराणिक मन्त्र अछि तकर मैथिली पद्यानुवाद करू। ई समाजक सभ लोककेँ उपासनासँ जोड़बाक लेल अहाँक क्रान्तिकारी डेग होएत।Continue Reading